Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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सप्तरत्न सम्बन्धी मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......101 यह मुद्रा वज्रायना देवी तारा की पूजाराधना से संबंधित है। इसमें दोनों हाथों में समान मुद्रा बनती है। पूजा मन्त्र यह है- 'ओम् पुरुषरत्न प्रतिच्चाहूम् स्वाहा।' विधि
हथेलियों को मध्यभाग में नीचे की तरफ रखें, अंगूठा और तर्जनी के अग्रभागों को परस्पर में स्पर्शित करें, मध्यमा को ऊपर की ओर सीधी रखें, कनिष्ठिका और अनामिका को हथेली की तरफ झुकायें तथा तर्जनी, अनामिका
और कनिष्ठिका के द्वितीय पोर एक-दूसरे से स्पर्शित रहें, इस भाँति पुरुष रत्न मुद्रा बनती है।
सुपरिणाम पुरुष रत्न मुद्रा
• यह मुद्रा अग्नि तत्त्व को प्रभावित करते हुए पाचन तन्त्र को सन्तुलित करती है। शारीरिक स्थूलता एवं मानसिक तनाव को न्यून करती है। • मणिपुर चक्र की शक्ति जागृत करते हुए यह आत्मिक बल प्रदान करती है और मधुमेह, उदर-पीड़ा, अपच आदि का निवारण करती है। • यह मुद्रा स्वभाव को सौम्य, निडर एवं शान्त बनाती है।