Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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56... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
विधि
दायीं हथेली कुछ ऊपर उठी हुई, अंगुलियाँ किंचित मुड़ी हुई, अंगूठा हल्के से अंगुलियों के अग्रभाग की तरफ झुका हुआ और हथेली धड़ से कुछ दूरी पर रहें।
बायीं हथेली मध्य भाग में, अंगुलियाँ भीतर तरफ मुड़ी हुई तथा अंगूठे का अग्रभाग तर्जनी के अग्रभाग का स्पर्श करता हुआ रहे। इस भाँति पेंग् प्लोंगअर्यु-संग्खर्न मुद्रा बनती है। 16
इस मुद्रा का एक अन्य प्रकारान्तर भी है जिसका नाम पेंग्-फ्लोंग्कमत्थन् मुद्रा है। भारत में इसे अहायवरद ज्ञान मुद्रा या अहायवरद कटक मुद्रा कहते हैं। प्रस्तुत मुद्रा की रचना एवं प्रयोजन भगवान बुद्ध की 13वीं मुद्रा के समरूप ही है केवल हाथों को रखने की स्थिति में भिन्नता है ।
सुपरिणाम
• यह मुद्रा पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्वों को संतुलित करते हुए शरीर के तेज एवं कान्ति में वृद्धि करती है। • यह मुद्रा मूलाधार एवं मणिपुर चक्र को सक्रिय रखती है तथा शरीरगत जल, फासफोरस, सोडियम, अग्नि आदि तत्वों का संतुलन करती है। • शक्ति एवं तैजस केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा क्रोधादि कषायों एवं काम-वासनाओं को शान्त करती है। आध्यात्मिक उच्चता एवं जागृति देती है। • एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार इस मुद्रा से शरीर की गर्मी संतुलित रहती है और वंध्यत्व, मोटापा, प्रसूति पीड़ा आदि में कमी होती है।
14. अभय मुद्रा
इस मुद्रा का वर्णन भगवान बुद्ध की मुख्य पाँच मुद्राओं के अन्तर्गत कर