Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
भगवान बुद्ध की मुख्य 5 एवं सामान्य 40 मुद्राओं की......69 यह भगवान बुद्ध की अलौकिक विशेषताओं से युक्त तेईसवीं मुद्रा है। इस मुद्रा प्रयोग से बुद्ध ने जंगली हाथी को एकटक देखते हुए उसे वश में किया था, अत: यह उसकी सूचक कही गई है। विधि ___दायी हथेली को मध्य भाग में रखें, अंगूठा और तर्जनी के अग्रभाग को स्पर्श करवायें तथा शेष अंगुलियों को बायीं तरफ फैलायें। बायीं हथेली को भी मध्यभाग में रखते हुए अंगुलियों को नीचे की ओर प्रसरित करने पर ‘पेंग् नकवलोक्' मुद्रा बनती है।26 इस मुद्रा में भी मस्तक को बायीं तरफ घुमाया जाता है। सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं आकाश तत्त्वों में संतुलन स्थापित करती है। इससे थायरॉइड, पेराथायरॉइड, टान्सील, लाररस आदि पर नियंत्रण होता है तथा रूधिर, मांस, चरबी. अस्थि आदि के निर्माण में सहायता मिलती है। . इस मुद्रा के द्वारा साधक मणिपुर एवं सहस्रार चक्र को जागृत कर सकता है। इससे संकल्प-विकल्पों का नाश, सम्यक ज्ञान की प्राप्ति, तनावों की उपशान्ति तथा चारित्र विकास होता है। • ज्ञान एवं तेजस केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा बुद्धि, स्मृति एवं चिंतन शक्ति में वर्धन, पूर्व जन्म आदि का स्मरण तथा आन्तरिक एवं बाह्य तेज का प्रस्फुटन करती है। . एक्यूप्रेशर के अनुसार इससे पिनियल ग्रंथि पर दबाव पड़ता है जो कि समस्त ग्रंथियों का विधिवत संचालन करती है। यह यौन ग्रंथियों और शरीर स्थित पानी का भी संतुलन करती है। 24. पेंग्-सोंग्रुपुत्कंग मुद्रा (चढ़ाये हुए जल को ग्रहण करने की मुद्रा)
भारत में इस मुद्रा का नाम 'ध्यान-निद्रातहस्त' मुद्रा है। यह मुद्रा थाई बौद्ध परंपरा में प्रचलित भगवान बुद्ध द्वारा धारण की गई 40 मुद्राओं में से चौबीसवीं मुद्रा है। उपलब्ध वर्णन के अनुसार बुद्ध ने इस मुद्रा के द्वारा अर्पित किया गया जल ग्रहण किया था। यहाँ जल ग्रहण का प्रयोजन उदर प्रक्षेप भी हो सकता है
और शरीर अशुचि का निवारण करना भी हो सकता है। मूलत: यह मुद्रा पात्र में जल ग्रहण करने से सम्बन्धित है। यह संयुक्त मुद्रा वीरासन या वज्रासन में की जाती है।