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भगवान बुद्ध की मुख्य 5 एवं सामान्य 40 मुद्राओं की...
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विधि
दोनों हथेलियों को अन्दर की तरफ रखते हुए अंगुलियों को नीचे की तरफ फैलाने एवं हाथों को पार्श्वभाग में रखने पर बनती पेंग् फ्रतोप्युन् मुद्रा बनती है।29 सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं जल तत्त्व को संतुलित करती है। इनके संयोग से पित्त से उभरने वाली बीमारियाँ शांत होती हैं, मूत्र दोष का परिहार होता है तथा गुर्दा स्वस्थ बनता है। पाचन तंत्र सक्रिय एवं स्वस्थ रहने से शारीरिक स्वस्थता प्राप्त होती है। • इस मुद्रा से मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र प्रभावित होते हैं। जिससे आत्मशक्ति का ऊर्ध्वगमन होता है, जिह्वा पर सरस्वती का वास होता है और मधुमेह, कब्ज, अपच, नाभि चक्र सम्बन्धी रोग दूर होते हैं। • यह मुद्रा गोनाड्स, एड्रिनल एवं पेन्क्रियाज पर प्रभाव डालती है जिससे मासिक धर्म सम्बन्धी अनियमितता, हस्त दोष, कपट वृत्ति आदि की समस्याएँ दूर होती है। 27. पेंग्- खोर् - फोन् - मुद्रा (वर्षा के आह्वान की मुद्रा)
यह मुद्रा थाईलैण्ड के बौद्ध अनुयायियों में अधिक प्रचलित है। वहाँ इसे पेंग्-खोर्-फोन् मुद्रा कहते हैं। भारत में इस मुद्रा के दो नाम हैं- 1. अंचितअहायवरद और 2. गन्धाररत्थ ।
यह बुद्ध की जीवन साधना से सम्बन्धित 40 मुद्राओं और आसनों में से सत्ताईसवीं मुद्रा है। भगवान बुद्ध द्वारा बारिश के लिए किये गये आह्वान की सूचक यह मुद्रा दोनों हाथों से की जाती है।
विधि
दायीं हथेली को ऊर्ध्वाभिमुख रखते हुए अंगुलियों को थोड़ी सी मोड़ें, अंगूठे को अंगुलियों के अग्रभाग की तरफ झुकाया हुआ रखें तथा हथेली के पृष्ठभाग को घुटने या जंघे पर स्थिर करें।
बायें हाथ को अभय मुद्रा के समान रखते हुए अंगुलियों एवं अंगूठे को हल्के से झुकायें तथा हथेली बाहर की तरफ नीचे झुकी हुई शरीर से 45° कोण पर रहें। इस विधि पूर्वक पेंग्-खोर् फैन् मुद्रा बनती है। 30