Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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70... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि ___ दायीं हथेली शिथिल रूप से किंचित उठी हुई ऊर्ध्वाभिमुख एवं गोद के आश्रित रहें। बायीं हथेली की अंगुलियाँ नीचे की तरफ फैली हुई तथा हाथ घुटने पर रहें इस भाँति पेंग्-सोंग्रुपुत्कंग मुद्रा बनती है।27
पेंग्-सागुपुत्कंग मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं वायु तत्त्व को संतुलित करती है। इनके संयोग से पित्त प्रकृति का संतुलन होता है। इससे मस्तिष्क की कार्यशक्ति, शरीर की गर्मी, आँख और लीवर में फायदा होता है तथा एसिडिटी, व्रण, त्वचा सम्बन्धी तकलीफों का उपशमन होता है। • यह मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र को प्रभावित करते हुए फेफड़ें और हृदय के कार्यों का नियमन, शरीर के तापमान का नियंत्रण और कैल्शियम का संतुलन करती है। पाचक रसों के उत्पादन, शरीरस्थ रक्त, शर्करा, जल और सोडियम को परिमाण युक्त रखती है। • यह मुद्रा एड्रिनल एवं थायरॉइड ग्रंथि का नियमन करते हुए पित्ताशय, लीवर, रक्त परिसंचरण, रक्तचाप, प्राणवायु का संतुलन करती है और शारीरिक विकास की देखभाल करती है।