________________
52... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
विधि
बायीं हथेली ऊर्ध्वमुख और बाहर की तरफ प्रसरित हुई, अंगुलियाँ हल्की सी मुड़ी हुई, अंगूठा हल्का सा अंगुलियों के अग्रभाग की तरफ मुड़ा हुआ एवं फल विशेष को धारण करता हुआ दिखाई दें तथा हथेली गोद में रहें। दायीं हथेली ऊपर की तरफ एवं अंगुलियाँ फैलती हुई रहें, इस तरह पैंग्-छन्-समोर् मुद्रा बनती है। 13
सुपरिणाम
• यह मुद्रा शरीरगत अग्नि तत्त्व को प्रभावित करती है इससे मुद्रा धारक में स्फूर्ति, जोश, उष्णता बढ़ती है तथा निद्रा, आलस्य एवं पाचन सम्बन्धी विकार दूर होते है। • इस मुद्रा की साधना से मणिपुर चक्र जागृत होता है जो आध्यात्मिक और भौतिक व्यक्तित्व को उच्चता प्रदान करता है । • इससे तैजस केन्द्र सक्रिय होता है जिससे पाचन कार्यों में सहयोग प्राप्त होता है तथा शारीरिक तेज में वृद्धि होती है। • एक्युप्रेशर प्रणाली के अनुसार इसके द्वारा आत्मनियंत्रण, नेतृत्व क्षमता, तीव्र परखशक्ति, अनुपम कार्यशक्ति का वर्धन होता है।
11. पेंग् लिला मुद्रा ( गमनागमन की मुद्रा )
यह मुद्रा भारत में लोलहस्त वितर्क मुद्रा के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान बुद्ध के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालने सम्बन्धी 40 मुद्राओं और आसनों में से यह 11वीं मुद्रा है। पूर्वकथित पेंग् लिला नामक (छठवीं) मुद्रा का ही यह प्रकारान्तर है। उस मुद्रा में बायां हाथ उठा हुआ और दायां हाथ नीचे की तरफ रहता है जबकि इस मुद्रा में दाहिना हाथ उठा हुआ और बायां हाथ नीचे की तरफ रहता है। पाँवों की स्थिति दोनों प्रकारों में समान रहती है। मूलतः यह मुद्रा भगवान बुद्ध की हलन चलन क्रिया को दर्शाती है।
विधि
दायां हाथ उठा हुआ, अंगुलियाँ और अंगूठे शिथिल रूप से ऊर्ध्व प्रसरित एवं हल्के से झुके हुए तथा हथेली छाती के स्तर पर रहें। बायीं हथेली मध्यभाग में, अंगुलियाँ नीचे की तरफ फैली हुई पार्श्वभाग में स्थिर रहें, इस भाँति पेंग् लिला मुद्रा बनती है। 14