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40... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन परस्पर स्पर्श करते हुए और शेष अंगुलियाँ शिथिल रूप से दायीं तरफ फैली हुई रहें।
तत्पश्चात बायाँ हाथ दाएँ हाथ को Cross करता हुआ रहने पर पेंग् तुक्कर किरिय मुद्रा निर्मित होती है।
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पेंग्-तुक्कर किरिय मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा जल एवं वायु तत्त्व को प्रभावित करती है। इन दोनों के संयोग से रक्त विकार, वायु सम्बन्धी दोष, शारीरिक रूखापन, कुपित वायु आदि का निवारण होता है। • यह मुद्रा स्वाधिष्ठान एवं विशुद्धि चक्र के कार्यों का नियमन करती है जिससे पेट के परदे के नीचे स्थित सभी अवयवों का कार्य सुचारू रूप से होता है। • यह मुद्रा थायरॉइड एवं गोनाडस् (कामग्रंथियों) को प्रभावित करती है इससे वायु तत्त्व, फेफड़ें और हृदय का नियमन होता है। शक्ति का उत्पादन होता है, ज्ञान ग्रंथियाँ जागृत होती है तथा शारीरिक गर्मी का संतुलन होता है। • एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार इससे नाभि चक्र सम्बन्धी रोग जैसे