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तीर्थकर चरित्र - के नीचे ध्यान करते हुए देखा । मैं उनके पास गया और दर्शन करें उनके पास बैठ गया । मुनियों ने अपना ध्यान समाप्त कर मुझे उपदेश दिया । उपदेश समाप्ति के बाद मैंने उनसे आपकी आयुष्य का प्रमाण पूछा । उन्होंने आपका आयुष्य एक मास का वाकी , बताया । हे स्वामी ! यही कारण है कि मै आपसे धर्माचरण करने की जल्दी कर रहा हूँ। . . ..
स्वयबुद्ध मन्त्री से अपनी एक मास की भायु-जानकर महावल बोला-मन्त्री! सोये हुए मुझको जगाकर तुमने बहुत अच्छा किया. किन्तु इतने अल्प समय में किस - तरह. धर्म की साधना करूँ ? स्वयंवुद्ध वोला-महाराज घबराइये. नहीं । एक दिन का धर्माचरण भी मुक्ति दे सकता है तो स्वर्गप्राप्ति तो कितनी दूर है। . . .. ... . महाबल राजा ने पुत्र को राज्य का भार सौंप दिया । दीन अनाथों को- दान दिया । स्वजनों और परिजनों से क्षमा याचना की और स्थविर मुनि के पास आलोचनापूर्वक सर्व- सावध योगों का त्याग कर अनशन ग्रहण कर लिया। यह अनशन २२ दिन तक चला । अन्त में नमस्कार मन्त्र. का ध्यान करते हुए देह का त्याग किया । ५-पाँचवाँ भव
मानव भव का आयुष्य पूर्ण करके महाबल का जीव दूसरे-देवलोक में श्रीप्रभ नामक विमान का स्वामी ललिताग- नामक देव बना। उसकी प्रधान देवी का नाम स्वयंप्रभा था।
___ महाराजा महाबल की मृत्यु का समाचार जानकर स्वयंवुद्ध मंत्री को वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने सिद्धाचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की । शुद्ध चारित्र का पालन कर वह भी ईशान कल्प में ईशानेन्द्र का धर्मा नामक सामानिक देव हुआ। . . . . . . -
ललितागदेव अपनी मुख्य देवी स्वयंप्रभा के साथ स्वर्गीय सुखों का उपभोग करने लगा। इस प्रकार स्वयंप्रभा के साथ विहार करते