Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
4: अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
अभडप्पवेसं अडंडिमं कुडंडीमं, अधरिमं अधारणिजं, अणुचुयमुइंगं अध्याय मल्लदामं गणियावर गाडइज्जकलियं, अणेगतालायराणुचरियं, पकुइय पकलियाभिरामं, जहा रिहं ट्ठिइबडियं दसदिवसियं करेह २, एयमाणंतियं पञ्चपिह ॥ तेत्रिकरेइ तब पञ्चपिणइ ॥ ७० ॥ एणं से सेणियराया बाहिरिया उवद्वाणसालाए सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सणसणे, सइएहिए साहस्सिएहिय सयसाहस्सिएहिय जाएहिं दाएहिं भाएहिं दलयमाणे २ पडिच्छमाणे २ एवंचणं विहरइ ॥ ७१ ॥ तरणं तस्स अम्मानहीं, किसी को किसी प्रकार का दंड उप शिक्षा मीले नहीं. किसी के वहां कोई धरणा देना नहीं, जो चहिये सो देना परंतु कर्जा देना नहीं, योग्यस्थान पर मृदंगादि वार्दित्र बजावो, अग्लान पुष्पोंकी मालाओं लटकावी, गणिकाओं के नृत्य करावो, नाटक करावो, इस तरह करके नगरी को कलित करो, किसी के वहां शोक संताप होने उस का निवारण करो, अनेक प्रकार की क्रीडा योग्य वस्तु मंगत्रावो इस तरह जन्मोत्सव की जो क्रिया हैं वे सब तुम स्वयं करो और अन्य के पास करावा इतना करके मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो.व उक्त पुरुषोंने वैसाही कर उन की आज्ञा उन को पीछी दे दी || ७० ॥ अत्र श्रेणिक राजा बाहिर की उपस्थान शाला में सिंहासन पर पूर्वाभिमुख से बैठा और सेंकडो हजारों व लाखों दान देता हुवा, खर्च करता हुवा व विभाग करता हुवा विचरने लगा || ७१ || अब उन के मातापिताने पहिले दिन जाति कर्म किया,
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* प्रकाशक - राजावहादुर लाला सुखदेव सझयजी ज्वालाप्रसादजी
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