Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
बहुपडि पुण्णणं अद्रुमाण राइंदियाणं विइचंताणं अद्धरत्तकाल समयंसीः सुकुमाल फार्मापायं जाव सव्वंगसुदरंगं दारयं पयाया ॥ ६६ ॥ तरणं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणीदेवी णवण्मासाणं जात्र दारगंपयाया पासंति, सिग्धं, तुरियं, चवलं, चेइयं, जेणेव सेणिएराया तेणेव उवागच्छइ २ सेणियं जएणं विजएणं वधावे २ करयल परिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिकट्टु, एवं क्यासी एवं खलु देवाणुपिया ! धारि णीदेवी व मासाणं जाव दारगं पयाया तं तुम्हे देवाणुप्पियाणं पिर्याणिवेदेपियंत्ते भव ॥ ६७ ॥ एणं से सेणिएराया तासिं अंगपडियारियाणं अंतिए एयमटुं सांच्च णिसम्म हट्ट तुट्ठे, ताओ अंगपडियारियाओ महुरेहिं वयणेहिं विपुलेय- पुप्फगंध सर्वांग सुंदर पुत्र उत्पन्न हुवा ॥ ६६ ॥ धारणी देवी को सवानव मास में पुत्र हुवा जानकर उन की अंग परिचारिकादासी शीघ्र त्वरित चपलतामे श्रेणिक राजा की पास गई. श्रेणिक राजा को जय विजय शब्द से विवाये और हस्तद्वय जोडकर मस्तक से आवर्त देकर ऐसा बोली- अहो देवानुप्रिय ! धारणी देवी को सवानव मास में अर्ध रात्रि पूर्ण हुने पुत्र उत्पन्न हुवा है, यह आपको प्रियकारी निवेदन प्रीतिउत्पादक होवो ॥ ६७ ॥ अंग * परिचारिकाकी पास ऐसा सुनकर श्रेणिक राजा हृष्ट तुष्ट हुवा और उसको मधुर वचन व विपुल पुष्प गंधमाला ब
* अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्यामलदजासी
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