Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
अर्थ
4. अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
गिरिपोयमूले दोहलं विणेमाणी सव्यसंमता आहिंडइ ॥६०॥ तणं सा धाणिदेवी विणीय दोहला, संपुण्णदोहला संपतदोहला, जायायविहोत्था ॥ ६१ ॥ एणं सांधारिणीदेवी सेयाणगंधहत्थि दुरुढासमाणी सेजिएणं हत्थि खंधवर गणणंपिट्ठाओ २ समनुगममाणमम्गा हयगय जात्र रहेणं जेणेव राय गेहेणयरे तेणेव उवागच्छइ २ यहिं यरं मज्झमस्झेणं जेणामेव सएभवणे, तेणामेव उवागच्छइ, विउलाई भगभगाहिं जाव विहरइ ॥ ६२ ॥ तणं से अभयकुमारे. जेणेव पोसह.सालाए तणामेव उत्रागच्छइ २ तां पुब्वभवसंगइयं देवं सकारेइ सम्माणेइ र पडिविसजेंड | ६३ ॥ एणं से देवे सगज्जियं पंचवण्णमेहोव सोहियं दिव्बं पाउससिरी पडिसाहरइ, ( तलेटी में अपना दोहल पूर्ण करती चारों तरफ फीरने लगी ॥ ६० ॥ अत्र धारणी देवी का दोहल पूर्ण हुवा, संपूर्ण हुवा इच्छा तृप्तहुई ॥ ६१॥ तत्पश्चात् धारणी देवी श्रेणिक राजाकी साथ सेचानक गंध हस्ती की पीठपर आरूढ होकर पीछे अश्व, गज यावत् रथ सहित राजगृह नगर में आई, राजगृहीं के बीच में होती हुई अपने राज्य भवन में आई. वहां जाकर विपुल भोगोपभोग सहित यावत् विचरने लगी ॥ ६२ ॥ | तत्पश्चात् अभयकुमार पोषधशाला में गया और अपना पूर्व परिचित देव को सत्कार सन्मान देकर विस- - | र्जित कीया ॥ ६३ ॥ तत्पश्चात् वह देव भी गर्जास्त्र विद्युत सहित पांच वर्णवाला मेघरूप दीव्य वर्षाऋतु
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
* प्रकाशक राजाबहादुर लाली सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
(www.jainelibrary.org