Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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+ पटमांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध +
मल्लालंकारेणं सक्कारेइ- सम्माणेइ २ मत्थयधोयाओ करेइ, पुत्ताणुपुत्तियं वित्तिकप्पइ, पडिविसज्जेह ॥ ६८ ॥ तएणं से सेणिएराया कुटुंबियपुरिसे सहावेइ एवं वयासीखिप्पामेव भोदेवाणुप्पिया ! रायगिहंणयरं आसित्त जाव परिगीयं करेह कारवेह, चारगसोहणं करेह २, माणुम्मागवठ्ठणं करेह २, एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह ॥ जाव पञ्चप्पिणति ॥ ६ ॥ तएणं से सेणियराया अट्ठारस सेणियप्पसेणिओ सद्दावेइ २
एवं व्यासी-गच्छहणं तुम देवाणुप्पिया! रायगिहेणयरे अभितरबाहिरए उस्सुकं, उक्कर, अलंकारों से सरकार सन्मान कीया, व उस के पस्तक का प्रक्षालग कीया और पुत्र के पुत्र प्रपोत्र ]पर्यन्त चाले वैसी आजीविका देकर विसर्जन की ॥ ६८ ॥ अब श्रेणिक राजाने कौटुम्बिक पुरुषों को बोल
और ऐसा बोले अहो देवानुप्रिय ! राजगृह नगर को अंदर व बाहिर सुगंधित जल से छिटकाव करो, में स्थान २ गीत गान करो, चारक की शुद्धि करो अर्थात् केदीयों को मुक्त करो, तोल माप की वृद्धि करो, अन्य से करावो और मुझे मेरी आज्ञा पीछो दो. कौटुम्भिक पुरुषोंने भी आज्ञानुसार कार्य करके उन की में
आमा पीछी दे दी॥१९॥फीर श्रेणिक रामाने अठारह श्रेणियों व अठारह प्रश्रेणियों यो छत्तीस कौम के 4 अग्रेसर को बोलाकर ऐसा कहा कि अहो देवानुप्रिय! राजगृह नगर के अंदर व बाहिर तुमारी पास से दश 0
दिन पर्यन्त दानहसलोलेना नहीं,ग्रहादिकके कर लेना नहीं,राजाके सेवक किसी के गृह में प्रशिकरसकेंगे।
उत्क्षिप्त (मे पकुमार) का प्रथम
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