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'नहीं, किसने कहा। परन्तु यह तो अब देनेवाले भगवान् की इच्छा है। यह समझकर हमें तृप्त होना चाहिए।" युवरानी ने कहा ।
चामव्वा ने कहा, "एक तरह से मुझमें और युवरानी में एक तरह की समानता है ।" यह बात हेग्गड़ती माचिकब्बे को ठीक नहीं लगी। युवरानी ने पूछा, "वह साम्य क्या है ?"
"मेरी तीन लड़कियाँ और युवरानीजी के तीन लड़के।"
युवरानी ने कहा, "भगवान् के सन्तुलन की यही रीति है, संसार में लड़केलड़कियों की संख्या में सन्तुलन हो, यही भगवान् की इच्छा है। एक पुरुष के लिए एक स्त्री । "
"मेरे मन की अभिलाषा को युवरानी जी ने प्रकारान्तर से व्यक्त किया है।" " मैंने किसी के मन की अभिलाषा या इच्छा की बात नहीं कही। मैंने यही कहा कि यदि ऐसा हो तो अच्छा है, एक साधारण नियम की बात कही। अमुक लड़के के लिए अमुक लड़की हो -- यह तो मैंने कहा नहीं।" युवरानी ने स्पष्ट किया।
चामलका के चेहरे पर निराशा की एक रेखा दौड़ गयी।
इतने में बच्ची बोपदेवी को नींद आ गयी थी। उसे देखकर युवरानी ने नौकरानी बोम्मले को आवाज देकर बुलाया और कहा, "पालको लाने को कहो; देखो, बेचारी यह बच्ची तो गयी है। पानको से मुकर छोड़ आयें।" थोड़ी ही देर में नौकरानी में खबर दी, " पालकी तैयार है।"
युवरानी ने नौकरानी से कहा, "बच्ची को गोद में लो।" फिर एक सोने की डिबिया में रखे हल्दी- कुंकुम से चामव्वा का सत्कार किया। जगी हुई दोनों लड़कियों को भी कुंकुम दिया, बाद में उनके सिर पर हाथ फेरती हुई, "अच्छा, अब आप लोग जाकर आराम करें। " कहकर उन्हें विदा किया।
माचिकब्बे भी जाने को तैयार होकर उठ खड़ी हुई ।
" इतनी जल्दी क्यों ? अभी आपकी लड़की का पाठ प्रवचन समाप्त नहीं हुआ होगा। अभी और बैठिए फिर जाइएगा।" कहती हुई युवराजी बैठ गयी।
माचिकब्जे भी युवरानी की ओर आश्चर्य से देखती हुई बैठ गयी।
युवरानी ने कहा, "आपको आश्चर्य करने की जररूत नहीं। रेविमय्या ने सारी बातें बतायी हैं। सचमुच अम्माजी को देखने की मेरी बड़ी चाह है। मेरा मन उसे देखने के लिए तड़प रहा है । परन्तु औचित्य के अनुरूप चलना ही ठीक है। राजघराने में रहकर हमने यह पाठ सीखा है, हेग्गड़तीजी अम्माजी के बारे में सुनकर हमारे मन मैं एक तरह की आत्मीयता उमड़ आयी है। आत्मीयता को अंकुरित और पल्लवित करना आपका ही काम है।"
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" बहुत बड़ी बात कही आपने। हम इस राजघराने के सेवक हैं, युवरानीजी ।
पट्टमहादेवी शान्तला : 45