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बड़े भाई के वहीं ठहरे रहने के कारण ऐसा लगता है कि वे महाराज के साम्य शायद आएँगे। उनसे बातचीत जो हुई उससे यह निश्चित रूप से मालूम न होने पर भी इस तरह सोचने की गुंजायश रही।"
युवरानी ने कहा, "यदि महाराज आ जाएँ तो सबको आनन्द होगा। आज सुबह ही सुबह आकर आपने एक बहुत ही आनन्ददायक समाचार सुनाया।"
___ अब तक हेग्गड़ती माचिका सम्भाष गजनता की रही बीपाव में युवरानी उनकी ओर देखती रही। उनकी दृष्टि में कुछ प्रश्न करने के-से भाव लग रहे थे। परन्तु माचिकब्बे उस भाव को नहीं समझ सकी।
युवरानीजी ने जबसे माचिकब्बे का परिचय कराया तबसे चामव्वा ने अब तक उनकी ओर दृष्टि तक न फेरी थी।
इधर बच्ची बोप्पदेवी बैठी ही बैठो ऊँघने लगी थी। युवरानी ने उसे देखा और कहा, "बेचारी बच्चियों को आधी नोंद में ही जगाकर सजाकर लायी हैं. ऐसा प्रतीत होता है। यात्रा की थकावट के कारण उनकी नींद पूरी नहीं हुई। देखिए, ऊँघ रही हैं। बच्चियों को ले जाकर उन्हें आराम करने दीजिए। यों ही उन्हें क्यों तकलीफ हो?"
__ "अगर बच्चियों को साथ न लाऊँ तो आप अन्यथा समझेंगी, यह सोचकर उन्हें जगाकर लायी।" चापय्या ने कहा।
"ऐसी बातों में अन्यथा समझने की क्या बात? आखिर बच्चियाँ ही तो हैं। अब देखिए, हमारी हेगड़तीजी अपनी लड़की को साथ नहीं लायीं। क्या इसलिए हम आक्षेप करेंगी?"
चामव्वा ने कहा, "शायद इकलौती बेटी होगी, बहुत प्रेम से पाला होगा।"
हेगड़ती माचिकब्बे को कुछ दुरा लगा। मगर उन्होंने भाव प्रकट नहीं किया। फिर बोली, "हमारा उतना ही भाग्य है जितना भगवान ने दिया है।" और चुप रही।
चामव्या ने पूछा, "बेटी की क्या उम्र है?" "दसवाँ चल रहा है।" हेग्गड़ती ने कहा।
"इतना ही। तब तो हमारी चामला की समवयस्का ही है। इसलिए उसे छोड़कर अकेली आयी हैं । मेरी बच्चियों में दो-दो साल का अन्तर है। इनके साथ अगर भगवान् ने एक लड़का दिया होता तो कितनी तृप्त रहती।"
युवरानी ने पूछा, "देकव्याजी के दो लड़के हैं न? वे आपके बच्चे हो तो हैं।"
"एक तरह से वह ठीक है। भगवान ने हमें बाँटकर दिया है, मेरी बड़ी बहन को लड़के-ही-लड़के दिये और मुझे दी लड़कियाँ।"
"परन्तु भगवान् ने आपको एक अधिक भी दिया है न?" ___ यह सुनकर चामव्वा ने कहा, "अगर वह एक लड़का होता तो कितना अच्छा होता!"
44 :: पट्टमहादेवी शान्तला