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"कोई बुरी बात हो तो कहने-पूछने में संकोच होना चाहिए। ऐसी बास पूछना भी नहीं चाहिए। अच्छी बात के कहने-पूछने में संकोच करने की क्या जरूरत है? महाराज का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। अत: वे आ न सकेंगे। हम उपनयन के बाद उपनीत वटु के साथ दोरसमुद्र जाएंगे और उनका आशीर्वाद लेंगे। वे बड़े हैं, इस अवसर पर उनकी अनुपस्थिति हमें खटक रही है।"
"इस उपनयन संस्कार को दोरसमुद्र में भी तो सम्पन्न किया जा सकता था?"
"हमने अपने परिवार के इष्टदेव की मनौती मानी थी। अप्पाजी का स्वास्थ्य शुरू से ही अच्छा नहीं रहा करता। बीच-बीच में उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही रहता है। इष्टदेव की उस मनौती को यहीं समर्पित करने के विचार से इस मांगलिक कार्य को यहीं सम्पन्न करने का निश्चय हमने किया। इन सारी बातों से महाराज अवगत
ठोक इसी मौके पर नौकरानी बोम्मले ने आकर प्रणाम किया। युवरानी ने पूछा, "क्या है?"
जवाब में उसने कहा, "दण्डनायक की पत्नी चामव्वाजी, और उनकी पुत्रियाँ दर्शन करने आयी हैं।"
___युवरानी कुछ असमंजस में पड़ी, कहा, "हेग्गड़तीजी अब क्या करें? न कहें तो वे असन्तुष्ट होंगी; अगर हाँ कहें तो हमें अपनी बातचीत यहीं खतम करने पड़ेगी।"
माचिकब्बे ने कहा, "मैं फिर कभी आकर दर्शन कर सकती हूँ। वे बेचारी इतने उत्साह से आयी हैं तो उन्हें बुलवा लीजिए। मुझे आज्ञा दें।" ।
"आप भी रहिए, उन्हें आने दो।" युवरानी एचलदेवी ने कहा, "बोम्मले ! उन्हें बुला लाओ।"
थोड़ी ही देर में दण्डनायक की पत्नी चामब्बा अपनी तीनों बेटियों-पदपलदेवी, चामलदेवी, बोप्पदेवी के साथ आयीं। अपना बड़प्पन दिखाने के लिए उन लोगों ने आभूषणों से अपने शरीरों को लाद रखा था, ऐसा लगता था कि वे युवरानी को मानो लजाना चाह रही हों। माचिकब्बे स्वयं को उनके सामने देखकर लजा गयी। उसके पास आभूषणों की कमी न थी। वे इस दण्डनायक की पत्नी से भी अधिक जेवरों से लदकर आ सकती थी। परन्तु युवरानीजी के सामने आडम्बरपूर्ण सजावट और दिखावा उसे अनावश्यक लग रहा था। वह अपनी हस्ती-हैसियत के अनुरूप साधारण ढंग से सजकर आयी थी। ___युवरानी एचलदेवी ने आदर के साथ कहा, "आइए, चामव्वाजी, विराजिए। लड़कियाँ बहुत तेजी से बढ़ती जाती हैं। देखिए अभी पिछले साल यह पदमला कितनी छोटी थी, अब तो यह दुलहन-सी लगने लगी है। खड़ी क्यों हैं बैठिए न? आप
42 :: पट्टमहादेत्री शान्तला