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बलिपुर की हेग्गड़ती माचिकम्बेजी हैं। आप कल ही यहाँ आयी हैं।"
माचिकब्बे सर झुकाकर मुस्कुरायी।
चामव्या उससे हटकर कुछ दूर पर बैठ गयो। बच्चियाँ भी मौ से सटकर बगल में बैठ गयीं।
"कल आप लोगों का आगमन हुआ? यात्रा सुखमय रही? वहाँ से कब रवाना हुई। दण्डनायक मरियाने जी आये हैं न? आपके बड़े भाई आएँगे या नहीं, मालम नहीं पड़ा। यहाँ आपके मुकाम पर व्यवस्था सब ठीक है न?" युवरानी जी ने पछा।।
"परसों वहाँ से रवाना हुए। पहुँचते-पहुंचते रात हो गयी थी, कल। यहाँ पहुँचकर हमने सोचा कि ठहरने के लिए राजमहल में ही व्यवस्था होगी, इसलिए हम सोधे यहीं आये। उस समय यहाँ जो सेवक काम पर तैनात था उसने हमें वहाँ ठहराया जहाँ अब हम ठहरे हैं।" __ "वहाँ सब सुविधाएँ हैं न?" युवरानी ने फिर पूछा।
"हैं, काम चल जाता है। राजमहल में जो सुविधाएँ प्राप्त हो सकती हैं, वे वहाँ कैसे मिल सकेंगी। खैर, ऐसे मौके पर छोटी-मोटी बातों की ओर ध्यान नहीं देना चाहिए।"
"ठीक है। ऐसे अवसरों पर हम भी ऐसी सहानुभूति एवं सहयोग की अपेक्षा करते हैं। क्या, बड़ी बेटी के लिए कहीं योग्य वर की तलाश कर रहे हैं ?" कहती हुई युवरानी एलचदेवी पद्मला की ओर देखती रहीं।
युवरानी का यह सवाल चामव्वा को ऊँचा नहीं। फिर भी उसने कहा, "उसके बारे में चिन्ता करने की मुझे क्या जरूरत है युवरानीजी ? हमारे दण्डनायकजी का यह विचार है कि वे राजघराने के साले हैं। महाराजा भी उन्हें उसी तरह मानते हैं। इसलिए अपनी हैसियत के मुताबिक योग्य वर खोजने करने का विचार कर रहे हैं। उनके मन में क्या है, सो तो मैं नहीं जानती।" कहकर चामव्ये ने बात टाल दी।
__ "ठीक ही तो है। दण्डनायक सचमुच भाग्यवान हैं। इसीलिए महारानी केलेयब्बरसि जी ने उन्हें अपना सगा भाई समझकर खुद विवाह कराया। वह विवाह हमारे विवाह से भी अधिक धूमधाम से सम्पन्न हुआ ऐसा सुनते हैं।"
"उनकी-सी वह उदारता अन्यत्र कहाँ देखने को मिलेगी, आप ही कहिए युवरातीजो? इस अवसर पर वे रहती तो कितना अच्छा होता?"
"वह सौभाग्य हमारे भाग्य में नहीं है। रहने दीजिए, यह बताइए, महाराज का स्वास्थ्य अब कैसा है?"
"सुना है कि अब कुछ आराम है।" "उनके पधारने की बात के बारे में दण्डनायक को मालूम होगा?" "शायद उनको मालूम नहीं होगा। अगर ऐसा होता तो वे मुझे बताते। परन्तु मेरे
पट्टमहादेवौ शान्तला :: 43