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अम्माजी के बारे में कहने लगता है तब उसकी उमंग और उत्साह देखते ही बनता है। आप लोग आये, हमें इससे बहुत आनन्द हुआ। यदि आप लोगों के ठहरने की व्यवस्था में कोई असुविधा हो तो बिना संकोच के कहला भेजें। वहाँ सब सुविधाएँ हैं न?"
"सब हैं। ऐसे अवसर पर कुछ बातों में यदि कमियाँ रह भी जाती हैं तो उनके बारे में सोचना ठीक भी नहीं, उचित भी नहीं।"
"फिर भी राजघराने के लोगों को कर्तव्य से लापरवाह नहीं होना चाहिए न? जो भी यहाँ आते हैं वे सब राजघराने के अपने हैं। सभी का शुभ आशीष राजकुमार को मिलना चाहिए। आये हुए अतिथियों को किसी तरह की असविधा न हो, ऐसी व्यवस्था करना और उनको सन्तुष्ट रखना हमारा कर्तव्य है। तभी उनसे हृदयपूर्वक आशीर्वाद मिलेगा। है न? सुविधाओं की कमी से असन्तुष्ट अतिथियों के मन से वह आशीर्वाद न मिल सकेगा। यह हमारा-आपका प्रथम मिलन है। यह भविष्य की आत्मीयता के विकास का प्रथम चरण है, नान्दी है। क्योंकि प्रजाजन, अधिकारी वर्ग, और उनके परिवार के लोग-इन सबकी आत्मीयता ही राजघराने का रक्षाकवच है। इसीलिए इस मांगलिक अवसर पर सबकी आत्मीयता प्राप्त करने के विचार से ऐसे सभी लोगों को निमन्त्रित किया है।"
माचिकब्बे मौन होकर सब सुनती रहीं। युषरानी ने बोलना बन्द किया तो भी वे मौन ही रहीं। तब फिर युवरानी ने पूछा, "मेरा कहना ठीक है न?"
"मैं एक साधारण हेग्गड़ती, युवरानीजी से क्या कहूँ?"
"महारानी, युवरानी, दण्डनायक की स्त्री, हेग्गड़ती, ये सब शब्द निमित्तमात्र हैं, केवल कार्य निर्वहण के कारण उन शब्दों का प्रयोग होता है। राज्य-संचालन के लिए अधिकारी, कर्मचारी वर्ग आदि सब उपाधियाँ हैं। चौबीसों घण्टे कोई अधिकारी नहीं, कोई नौकर नहीं। हम सब मानव हैं। जगदीश्वर की सन्तान हैं। सब समान हैं। यदि हम यह समझेंगे तो आत्मीयता सुदृढ़ होती है। आत्मीयता के बिना केवल दिखावे की विनय घातक होती है। इसलिए आपको हमसे किसी तरह का संकोच नहीं करना चाहिए। निस्संकोच खुले दिल से सुविधा-असुविधा के बारे में कहें। हमारे आपसी व्यवहार में किसी तरह का संकोच न हो।"
"ऐसा ही होगा, युवरानीजी।"
फिर मौन छा गया। माचिकब्बे कुछ कहना चाह रही थीं, परन्तु संकोच के कारण असमंजस में पड़ी रहीं।
"हेग्गड़तीजी क्या सोच रही हैं ?"
"कुछ नहीं, यही सोच रही थी और पूछना चाहती थी कि इस उपनयन के शुभअवसर पर महाराज पधारेंगे ही न? परन्तु मन में यह हिचकिचाहट हो रही थी कि पूर्वी या न पूछ। यह शंका हो रही थी कि यह पूछा जा सकता है या नहीं।"
पट्टमहादेवी शान्तला ::11