Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्टाध्यायस्य प्रथमः पादः स्थानी आदेश: रूपम् (शसि) प्रयोग: हृदय हृद् हृदयानि (हृद:) हृदा पूतं मनसा जातवेदो०
(शौ०सं० ४ ॥३९ ।१०)। निशा निश् निशा: (निश:) अमावस्यायां निशि (यजेत}
(खि० २।१८) असृक् असन् असृज: (अस्न:) असिक्तोऽस्ना (वरोहति}
(मै०सं० ३।१८) यूषान् (यूष्ण:) या पात्राणि यूष्ण आसेचनानि
(ऋ० ११६२।१३) दोष दोषन् दोषान् (दूष्ण:) यत्ते दोष्णो (दौर्भाग्यम्)
(मै०सं० ३।१०।३) यकृत् यकन् यकृत: (यक्न:) यक्नोऽवद्यति (मै०सं० ३।१०।३) शकृत् शकन् शकृत: (शक्न:) शक्नोऽवद्यति (शौ०सं० १२।४।४) उदक उदन् उदकानि (उद्न:) उनो दित्यस्य नो धेहि}
(तै०सं०२ ।४।८।२) आसन आसन् आसनानि (आस्न:) आसनि (किं लभे मधूनि}
(ऋ० १५ १७५।१)। आर्यभाषा: अर्थ-छन्द और भाषा में (शस्प्रभृतिषु) शस् आदि प्रत्यय परे होने पर पाद, दन्त, नासिका, मास, हृदय, निशा, असृक्, यूष, यकृत्, शकृत्, उदक, आसन शब्दों के स्थान में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (पद्आ सन्) यथासंख्य पद्, दत्, नस्, मास्. हृद्, निश्, असन्, यूषन्, दोषन्, यकन्, शकन्, उदन्, आसन् आदेश होते हैं।
उदा०-उदाहरण और उनका प्रयोग संस्कृतभाग में देख लेवें। सिद्धि-पदः । पाद+शस् । पद्+अस्। पद्+अरु । पद्+अर्। पदः ।
यहां शस प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से पाद के स्थान में पद् आदेश होता है। ऐसे ही-दत: आदि।
पाठकों की सुविधा के लिये ‘पाद' आदि सब शब्दों के समस्त रूप यहां लिखे जाते हैं