Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः है और 'प्रधान' उत्तरपद का लोप होता है। 'सौश्रुत:' में सुश्रुत् शब्द से 'तस्यापत्यम्' (४/१/९२) से अपत्य अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है ।
(३) वशोब्राह्मकृतेयः । यहां वशाप्रधान और गोत्रवाची ब्राह्मकृतेय शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास और उत्तरपद का लोप है। 'ब्राह्मकृतेय' में ब्रह्मकृत शब्द के शुभ्रादिगण में पठित होने से 'शुभ्रादिभ्यश्च' (४ | १ | १२३) से अपत्य अर्थ में ढक्
प्रत्यय है।
(४) कुर्मारीदाक्षाः । यहां कुमारीलाभकाम और अन्तेवासीवाची दाक्ष शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष और 'लाभकाम' उत्तरपद का लोप है। 'दाक्ष' शब्द में दाक्षिणा प्रोक्तम्-दाक्षम्, दाक्षमधीयते इति दाक्षाः । दाक्षि (व्याडि) आचार्य के द्वारा प्रोक्त संग्रह नामक ग्रन्थ 'दाक्ष' कहाता है। 'इञश्च' (४/२ । ११२ ) से अण् प्रत्यय होता है और दाक्ष (संग्रह) ग्रन्थ के अध्येता भी 'दाक्ष' कहाते हैं। 'प्रोक्ताल्लुक्' (४/२/६३) से अधीते वेद अर्थों में विहित 'अण्' का लुक् हो जाता है।
(५) कम्बेलचारायणीया: । कम्बलाभकाम और अन्तेवासीवाची चारायणीय शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास और उत्तरपद का लोप है। इस सूत्र से अन्तेवासीवाची चारायणीय शब्द उत्तरपद होने पर कम्बल पूर्वपद को आद्युदात्त होता है। चारायणीय' शब्द में प्रथम 'चर' शब्द से 'नडादिभ्यः फक्' (४ 1१1९९) से अपत्य अर्थ में 'फक्' होकर 'चारायण' और 'तेन प्रोक्तम्' (४ | ३ | १०१ ) से चारायण के द्वारा प्रोक्त अर्थ में 'वृद्धाच्छ: ' (४।२।११३) से 'छ' प्रत्यय होकर 'चारायणीय' (ग्रन्थ) और उसके अध्येता अर्थ में पूर्ववत् 'प्रोक्ताल्लुक्' (४।२।६२) से विहित 'अण्' प्रत्यय का लुक् होता है- चारायणीया: । ऐसे ही-घृत॑रौढीया: । औदनपाणिनीयाः । भिक्षमाणवः ।
(६) दासीब्राह्मणः। यहां दासी और ब्राह्मण शब्दों का 'कर्तृकरणे कृता बहुलम्' (२1१1३१) में बहुलवचन से अकृदन्त ब्राह्मण शब्द के साथ तृतीया तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से ब्राह्मण शब्द उत्तरपद होने पर दासी पूर्वपद आद्युदात्त होता है। ऐसे हीवृषेलीब्राह्मण: । भर्यब्राह्मणः ।
आद्युदात्तम्
(७) अङ्गानि मैरेये । ७० ।
प०वि० - अङ्गानि १ | ३ मैरेये ७ । १ ।
अनु०- पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त इति चानुवर्तते ।
अन्वयः-मैरेयेऽङ्गानि पूर्वपदमादिरुदात्तः ।
अर्थ:- मैरेयशब्दे उत्तरपदे तस्याङ्गवाचीनि पूर्वपदान्याद्युदात्तानि
भवन्ति ।