Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः
६१३ आर्यभाषा: अर्थ-(घुमास्थागापाजहातिसाम्) घु-संज्ञक और मा, स्था, गा, पा, जहाति (हा) और सा (अगस्य) अगों को (आर्धधातुके) आर्धधातुक (हलि) हलादि (क्डिति) कित्-डित् प्रत्यय परे होने पर (ईत्) ईकार आदेश होता है।
__ उदा०-(घु) दीयते । दान किया जाता है। देदीयते । वह पुन:-पुन:/अधिक दान करता है। धीयते । धारण-पोषण किया जाता है। देधीयते। वह पुन:-पुनः/अधिक धारण-पोषण करता है। (मा) मीयते । नापा जाता है। मेमीयते। वह पुन:-पुनः/ अधिक नापता है। (स्था) स्थीयते । ठहरा जाता है। तेष्ठीयते । वह पुन:-पुन:/अधिक ठहरता है। (गा) गीयते । स्तुति की जाती है। जेगीयते । वह पुन:-पुनः/अधिक स्तुति करता है। अध्यगीष्ट। उसने अध्ययन किया। अध्यगीषाताम् । उन दोनों ने अध्ययन किया। (पा) पीयते। पीया जाता है। पेपीयते। वह पुन:-पुन:/अधिक पीता है। (जहाति) हीयते । त्याग किया जाता है। जेहीयते । वह पुन:-पुन:/अधिक त्याग करता है। (सा) अवसीयते। समाप्त किया जाता है। अवसेसीयते। वह पुन:-पुन:/अधिक समाप्त करता है।
सिद्धि-(१) दीयते। दा+लट् । दा+ल। दा+त। दा+यक्+त। दा+य+त। द् ई+य+ते। दीयते।
___यहां डुदाञ् दाने (जु०प०) घु-संज्ञक धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से कर्मवाच्य में 'लट्' प्रत्यय है। दाधा घ्वदाप्' (१।१।२०) से 'दा' धातु की 'घु' संज्ञा है। 'सार्वधातुके यक्' (३।१।६७) से यक्' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से आर्धधातुक, हलादि, कित् यक्' प्रत्यय परे होने पर घु-संज्ञक 'दा' धातु के अन्त्य आकार को ईकार आदेश होता है।
ऐसे ही-डुधाञ् धारण-पोषणयोः' (जु०उ०) घु-संज्ञक धातु से-धीयते । 'मा माने (अदा०प०) धातु से-मीयते । 'ठा गतिनिवृतौ' (भ्वा०प०) धातु से-स्थीयते। 'गा स्तुतौं (जु०प०) धातु से-गीयते । ओहाक् त्यागे (हा) (जु०प०) धातु से-हीयते । षोऽन्तकर्मणि {सा) (दि०प०) धातु से-अवसीयते।
(२) देदीयते । दा+यङ् । दा+य । दुई+य। दीय-दीय । दी-दीय । दिदीय। देदीय।। देदीय+लट्-देदीयते।
यहां 'डुदान दाने (जु०उ०) घु-संज्ञक धातु से 'धातोरेकाचो हलादेः क्रियासमभिहारे यङ् (३।१।२२) से यङ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से आर्धधातुक, हलादि, ङित् यङ्' प्रत्यय परे होने पर 'दा' धातु के अन्त्य आकार को ईकार आदेश होता है। ह्रस्व:' (७।३।५९) से अभ्यास को ह्रस्वादेश (दि) और गुणो यङ्लुको:' (७।४।८२) से इगन्त अभ्यास को गुण (ए) होता है।
ऐसे ही उपरिलिखित धातुओं से दधीयते' आदि प्रयोग सिद्ध करें।