Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

View full book text
Previous | Next

Page 706
________________ ૬ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः आकारलोपः (१२) आतो धातोः ।१४०। प०वि०-आत: ६।१ धातो: ६।१। अनु०-अङ्गस्य, भस्य, लोप इति चानुवर्तते । अन्वय:-आतो धातोर्भस्य अङ्गस्य लोपः। अर्थ:-आकारान्तस्य धातोर्भसंज्ञकस्य अङ्गस्य लोपो भवति । उदा०-त्वं कीलालप: पश्य। कीलालपा। कीलालपे। त्वं शुभंय: पश्य। शुभंया। शुभंये। आर्यभाषा: अर्थ-(आत:) आकारान्त (धातो:) धातु के (भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अङ्ग का (लोप:) लोप होता है। उदा०-त्वं कीलालप: पश्य । तू कीलालपाओं को देख । कीलालपा अमृत का पान करनेवाले देवता। कीलालपा। कीलालपा केद्वारा। कीलालपे। कीलालपा केलिये। त्वं शुभंयः पश्य । तू कल्याण मार्ग के पथिकों को देख। शुभंया। कल्याण मार्ग के पथिक के द्वारा। शुभंये। कल्याण मार्ग के पथिक केलिये। सिद्धि-(१) कीलालप: । कीलाल+पा+विच् । कीलाल+पा+वि। कीलाल+पा+० । कीलालपा।। कीलालपा+शस् । कीलालपा+अस् । कीलालप्०+अस् । कीलालपस् । कीलालप: । यहां कीलाल-उपपद पा पाने (भ्वा०प०) धातु से 'आतो मनिन्क्वनिब्वनिपश्च (३।२।७४) 'विच्' प्रत्यय है। वरपक्तय' (६।१।६६) से वि' का सर्वहारी लोप होता है। तत्पश्चात् कीलालपा' शब्द से 'शस्' प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से 'पा' धातु के आकार का लोप होता है। ऐसे ही-कीलालपा (टा)। कीलालपे (डे)। (२) शुभंय: । यहां शुभम्' (अव्यय) उपपद या प्रापणे (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् विच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। शुभंया (टा)। शुभंये (डे)। आकारलोपः (१३) मन्त्रेष्वाङयादेरात्मनः ।१४१। प०वि०-मन्त्रेषु ७।३ आडि ७१ आदे: ६१ आत्मन: ६।१। अनु०-अगस्य, भस्य, लोप:, आत इति चानुवर्तते। अन्वय:-मन्त्रेषु आत्मनो भस्य अङ्गस्य आङि आदेरातो लोपः। अर्थ:-मन्त्रेषु आत्मनो भस्य अङ्गस्य आडि प्रत्यये परतो आदेराकारस्य लोपो भवति।

Loading...

Page Navigation
1 ... 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754