Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्टाध्यायस्य चतुर्थः पादः यहां पृथु' शब्द से 'अतिशायने तमबिष्ठनौ' (५।३।५५) से 'इष्ठन्' प्रत्यय है। इस प्रत्यय के परे होने पर हलादि, लघु पृथु' के ऋकार को 'र' (+अ) आदेश होता है। ट:' (६।४।५५) से पृथु' के टि-भाग (उ) का लोप होता है। ऐसे ही मृदु' शब्द से-म्रदिष्ठः।
(२) प्रथिमा। यहां 'पृथु' शब्द से पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा' (५।१।१२२) से भाव-अर्थ में 'इमनिच्’ प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही मृदु' शब्द से-मदिमा।
(३) प्रथीयान् । यहां 'पृथु' शब्द से द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनौं' (५।३।५७) से अतिशायन अर्थ में ईयसुन्’ प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही मृदु' शब्द से-मदीयान् ।
विशेष: इस र-विधि में वैयाकरण पृथु, मृदु, भृश, कृश और परिवृढ इन छ: शब्दों का स्मरण करते हैं। रादेश-विकल्पः
__ (३४) विभाष|श्छन्दसि ।१६२ । प०वि०-विभाषा ११ ऋजो: ६१ छन्दसि ७१। अनु०-अङ्गस्य, भस्य, इष्ठेमेयस्सु, र:, ऋत इति चानुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि ऋजोर्भस्य अङ्गस्य ऋत इष्ठेमेयस्सु विभाषा रः ।
अर्थ:-छन्दसि विषये ऋजोरित्येतस्य भसंज्ञकस्य अङ्गस्य ऋत: स्थाने इष्ठेमेयस्सु प्रत्ययेषु परतो विकल्पेन रादेशो भवति।
उदा०-रजिष्ठं नेषि पन्थाम् (ऋ० १।९१।१)। त्वमृजिष्ठः ।
आर्यभाषा8 अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (ऋजोः) ऋजु इस (भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अङ्ग के (ऋत:) ऋकार के स्थान में (इष्ठेमेयस्सु) इष्ठन्, इमनिच, ईयसुन् प्रत्यय परे होने पर (विभाषा) विकल्प से (र:) र (र+अ) आदेश होता है।
उदा०-रजिष्ठं नेषि पन्थाम् (ऋ० १।९११)। रजिष्ठ: सरलतम । त्वमजिष्ठः । ऋजिष्ठ: सरलतम।
सिद्धि-रजिष्ठः । ऋजु+इष्ठन् । ऋजु+इष्ठ। ऋ+इष्ठ । रज्+इष्ठ। रजिष्ठ+सु। रजिष्ठः।
___ यहां 'ऋजु' शब्द से 'अतिशायने तमबिष्ठनौ' (५।३।५५) से अतिशायन अर्थ में 'इष्ठन्' प्रत्यय है। इस प्रत्यय के परे होने पर 'ऋजु' के ऋकार को र-आदेश होता है। 2:' (६।४।१५५) से 'ऋजु' के टि-भाग (उ) का लोप होता है। विकल्प-पक्ष में 'ऋजु' को र-आदेश नहीं है-ऋजिष्ठः ।