Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

View full book text
Previous | Next

Page 722
________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः ७०५ क्षेपीयान् (ईयसुन्) । (क्षुद्रः) क्षोदिष्ठ: (इष्ठन्) । क्षोदिमा (इमनिच्) । क्षोदीयान् (ईयसुन्)। आर्यभाषा: अर्थ- (स्थूल०क्षुद्राणाम्) स्थूल, दूर, युवन्, ह्रस्व, क्षिप्र, क्षुद्र इन (भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अगों के (इष्ठेमेयस्सु) इष्ठन्, इमनिच, ईयसुन् प्रत्यय परे होने पर (यणादिपरम्) परवर्ती यणादि भाग का (लोपः) लोप होता है (च) और उस यणादि से (पूर्वस्य) पूर्ववर्ती इक् को (गुण:) गुण होता है। उदा०-(स्थूल) स्थविष्ठः । बहुतों में अति स्थूल (मोटा)। स्थवीयान् । दो में अति स्थूल। (दूर) दविष्ठः । बहुतों में अति दूर। दवीयान् । दो में अति दूर। (युवन्) यविष्ठः । बहुतों में अति युवा (जवान)। यवीयान् । दो में अति युवा। (हस्व) हसिष्ठः । बहुतों में अति ह्रस्व (छोटा)। हसिमा । ह्रस्वभाव (छोटापन)। हसीयान् । दो में अति ह्रस्व। (क्षिप्र) क्षेपिष्ठः । बहुतों में अति क्षिप्र (शीघ्र)। क्षेपिमा। शीघ्रता। क्षेपीयान् । दो में अति शीघ्र। (क्षुद्र) क्षोदिष्ठ: बहुतों में अति क्षुद्र (छोटा)। क्षोदिमा । क्षुद्रता (छोटापन)। क्षोदीयान् दो में अति क्षुद्र (छोटा)। सिद्धि-(१) स्थविष्ठः । स्थूल+इष्ठन्। स्थूल+इष्ठ। स्थू०+इष्ठ। स्थो+इष्ठ। स्थव्+इष्ठ। स्थविष्ठ+सु। स्थविष्ठः । यहां स्थूल' शब्द से 'अतिशायने तमबिष्ठनौं' (५।३।५५) से 'इष्ठन्' प्रत्यय है। इस प्रत्यय के परे होने पर इस सूत्र से स्थूल' के परवर्ती यणादि भाग (ल अ) का लोप होता है और यणादि से पूर्ववर्ती इक् (ऊ) को गुण होता है। 'एचोऽयवायाव:' (६।१ १७७) से 'अव्' आदेश है। ऐसे ही- दविष्ठः' आदि। (२) स्थवीयान् । यहां स्थूल शब्द से द्विवचनविभज्योपपदे०' (५ ।३ ।५७) से ईयसुन्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही- 'दवीयान्' आदि। (३) हसिमा । ह्रस्व+इमनिच् । ह्रस्व+इमन् । ह्रस्०+इमन् । हसिमन्+सु । हसिमा। यहां ह्रस्व' शब्द से 'पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा' (५।१।१२२) से भाव-अर्थ में 'इमनिच्' प्रत्यय है। इस प्रत्यय के परे होने पर इस सूत्र से ह्रस्व' के परवर्ती यणादि भाग का लोप होता है। ऐसे ही-क्षेपिमा, क्षोदिमा । ह्रस्व, क्षिप्र, क्षुद्र ये शब्द पृथ्वादिगण में पठित हैं, अत: इन से 'पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा' (५।१।१२२) से 'इमनिच्' प्रत्यय होता है। प्रियादीनां प्रादय आदेशाः(२६) प्रियस्थिरस्फिरोरुबहुलगुरुवृद्धतृप्रदीर्घवृन्दारकाणां प्रस्थस्फवबंहिगर्वर्षित्रप्द्राघिवृन्दाः !१५७ । प०वि०- प्रिय-स्थिर-स्फिर-उरु-बहुल-गुरु-वृद्ध-तृप्र-दीर्घ-वृन्दारकाणाम् ६।३ प्र-स्थ-स्फ-वर्-बंहि-गर्-वर्षि-त्रप्-द्राघि-वृन्दा: १।३ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754