Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः
६६५ आर्यभाषा: अर्थ-(जहाते:) जहाति-हा इस (अङ्गस्य) अङ्ग को (च) भी (हलि) हलादि (सार्वधातुके) सार्वधातुक (क्डिति) कित् और डित् प्रत्यय परे होने पर (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (इत्) इकारादेश होता है।
उदा०-तौ जिहित:, जिहीत: । वे दोनों त्याग करते हैं। युवां जिहिथ:, जिहीथः । तुम दोनों त्याग करते हो।
सिद्धि-जिहितः। हा+लट् । हा+ल। हा+तस्। हा+शप्+तस् । हा+o+तस्। हा-हा+o+तस् । हा-ह इ+तस् । झि-हि+तस् । जि-हि+तस् । जिहितस् । जिहितः।
यहां 'ओहाक् त्यागे (जु०प०) धातु से 'वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। 'जुहोत्यादिभ्यः श्लुः' (२।४।७५) से 'शप्' को श्लु-आदेश और श्लौ' (६।१।१०) से धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र से जहाति (हा) अङ्ग को हलादि, सार्वधातुक, डित् तस्' प्रत्यय परे होने पर इकारादेश होता है। तस्' प्रत्यय पूर्ववत् डिद्वत् है। भञामित्' (७।४।७६) से अभ्यास को इकार आदेश होता है। विकल्प पक्ष में इकारादेश नहीं है-जिहीत: । ऐसे ही-जिहिथ:, जिहीथः । इकाराकारादेश-विकल्पः
(४२) आ च हौ।११७। प०वि०-आ ११ (सु-लुक्) च अव्ययपदम्, हौ ७।१ । अनु०-अङ्गस्य, इत्, अन्यतरस्यामिति चानुवर्तते । अन्वय:-जहातेरङ्गस्य हावन्यतरस्याम् इद् आ च ।
अर्थ:-जहातेरङ्गस्य हौ प्रत्यये परतो विकल्पेन इकार-आकारावादेशौ भवतः।
उदा०-त्वं जहिहि, जहाहि, जहीहि।
आर्यभाषा: अर्थ-(जहाते:) जहाति-हा इस (अङ्गस्य) अङ्ग को (हौ) हि-प्रत्यय परे होने पर (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (इद् आ च) इकार और आकार आदेश होते हैं।
उदा०-त्वं जहिहि, जहाहि, जहीहि । तू त्याग कर।
सिद्धि-जहिहि। हा+लोट् । हा+ल। हा+सिप्। हा+शप्+सि। हा+o+हि। हा-हा+o+हि। हा-ह इ+हि। झ-हि+हि। ज-हि+हि। जहिहि।
यहां 'ओहाक् त्यागे' (जु०प०) धातु से लोट् च' (३।३ ।१६२) से 'लोट्' प्रत्यय है। जुहोत्यादिभ्य: श्लुः' (२।४।७५) से शप्’ को ‘श्लु’ आदेश और श्लौ' (६।१।१०) से धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र से 'हि' प्रत्यय परे होने पर 'हा' अङ्ग को इकारादेश