Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आधुदात्तम्
(१०) अके जीविकार्थे ।७३। प०वि०-अके ७१ जीविकार्थे ७।१।।
स०-जीविकाया अर्थ इति जीविकार्थः, तस्मिन्-जीविकार्थे (षष्ठीतत्पुरुषः)।
अनु०-पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त: इति चानुवर्तते । अन्वय:-जीविकार्थेऽके पूर्वपदमादिरुदात्त:।
अर्थ:-जीविकार्थवाचिनि समासेऽकप्रत्ययान्ते शब्दे उत्तरपदे पूर्वमादिरुदात्तं भवति।
उदा०-दन्तलेखक: । नखलेखक: । अवस्करशोधक: । रमणीयकारकः । अत्र जीविकाशब्देन तद्वान् जीविकावानित्यर्थो गृह्यते ।
आर्यभाषा: अर्थ- (जीविकार्थे) जीविकार्थवाची समास में (अके) अक-प्रत्ययान्त शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (आदिरुदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०-दन्तलेखकः । दांतों पर लिखनेवाला। नखेलेखकः । नाखुनों पर पॉलिश करनेवाला । अवस्करशोधकः । कूड़ा साफ करनेवाला (सफाई कर्मचारी)। रमणीयकारकः । सुन्दर बनानेवाला (मेक-अप करनेवाला)।
सिद्धि-दन्तलेखकः । यहां दन्त' और जीविकार्थवाची, अक-प्रत्ययान्त 'लेखक' शब्दों का नित्यं क्रीडाजीविकयो:' (२।२।१७) से नित्य षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'लेखक' शब्द में लिख अक्षरविन्यासे' (तु०प०) धातु से 'वुल्तृचौं' (३।१।१३३) से बुल् प्रत्यय है। युवोरनाकौ' (७।१।१) से 'वु' के स्थान में 'अक' आदेश होता है। इस सूत्र से जीविकार्थवाची अक-प्रत्ययान्त 'लेखक' शब्द उत्तरपद होने पर पूर्वपद 'दन्त' शब्द को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-नखलेखकः, अवस्करशोधकः, रमणीयकारकः । यहां नित्य समास में विग्रहवाक्य नहीं होता है। आधुदात्तम्
(११) प्राचां क्रीडायाम् ७४। प०वि०-प्राचाम् ६।३ क्रीडायाम् ७।१। अनु०-पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त, अके इति चानुवर्तते । अन्वय:-प्राचां क्रीडायाम् अके पूर्वपदमादिरुदात्त: ।