Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः
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(३) हार्दम् | यहां हृदय शब्द से 'तस्येदम्' ( ४ | ३ | १२० ) से यथाविहित 'अण्' प्रत्यय है। इस सूत्र से हृदय के स्थान में 'अण्' प्रत्यय परे होने पर 'हृत्' आदेश होता है। 'तद्धितेष्वचामादे:' (७ । २ । ११७) से अंग को आदिवृद्धि होती है।
(४) हृल्लास: । यहां हृदय और लास शब्दों का 'षष्ठी' (२ 1२ 1८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से हृदय के स्थान में लास उत्तरपद होने पर हृत् आदेश होता है। 'तोर्लि' (८।४।५९) से तकार को लकार परे होने पर परसवर्ण होता है।
हृदादेश-विकल्पः
(६) वा शोकष्यञोगेषु । ५१ ।
प०वि०-वा अव्ययपदम्, शोक - ष्यञ् - रोगेषु ७।३। स०-शोकश्च ष्यञ् च रोगश्च ते शोकष्यञोगा:, तेषु-शोकष्यञोगेषु
(इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु०- उत्तरपदे, हृदयस्य, हृद् इति चानुवर्तते ।
अन्वयः- हृदयस्य शोकष्यञरोगेषु उत्तरपदेषु वा हृत् ।
अर्थ:- हृदयस्य स्थाने शोकष्यञोगेषु उत्तरपदेषु विकल्पेन हृद् आदेशो भवति ।
अत्र ष्यञ् इति प्रत्यय उत्तरपदेन न युज्यतेऽर्थासम्भवात् ।
उदा०- (शोक: ) हृदयस्य शोक इति हृच्छोक:, हृदयशोकः । ष्यञ् ) सुहृदयस्य भाव इति सौहार्द्यम्, सौहृदय्यम् । (रोग) हृदयस्य रोग इति हृद्रोग, हृदयरोग: ।
आर्यभाषाः अर्थ- (हृदयस्य) हृदय शब्द के स्थान में (शोकष्यञोगेषु) शोक, ष्यञ् और रोग (उत्तरपदे ) उत्तरपद होने पर (वा) विकल्प से (हृत्) हृत् आदेश होता है।
यहां ष्यञ् प्रत्यय है अत: इसका उत्तरपद के साथ योग नहीं है।
उदा०- (शोक) हृच्छोक, हृदयशोकः । हृदय का शोक । ( ष्यञ् ) सौहार्द्यम्, सौहृदय्यम्। सुहृदय का भाव / कर्म । (रोग) हृद्रोग:, हृदयरोगः । हृदय का रोग।
सिद्धि- हृच्छोकः । हृदय और शोक शब्दों का षष्ठी' (२121८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से हृदय शब्द को शोक शब्द उत्तरपद होने पर हृत् आदेश होता है। 'शश्छोऽटिं' (८/४/६३) से शोक के शकार को छकार और स्तो: श्चुना श्चुः '