Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-समिध्यिता, समिधिता। अपनी समिधा को चाहनेवाला अथवा समिधा के समान आचरण करनेवाला। दूषधिता, दृषदिता। अपने पत्थर को चाहनेवाला अथवा पत्थर के समान आचरण करनेवाला।
सिद्धि-समिध्यिता । समिध्+क्यच् । समिध्+य । समिध्य+तृच् । समिध्य+इट्+तु। समिध्य+इ+तृ। समितध्यतृ+सु । समिध्यिता।।
यहां प्रथम समिध्' शब्द से 'सुप आत्मन: क्यच् (३।१।८) से आत्म-इच्छा अर्थ में क्यच्' प्रत्यय है अथवा कर्तुः क्यङ् सलोपश्च' (३।१।११) से क्यङ्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् क्यच्-प्रत्ययान्त समिध्य' धातु से ण्वलतचौ' (३।१।१३३) से आर्धधातुक तृच्' प्रत्यय है। 'अतो लोप:' (६।४।४८) से अङ्ग के अकार का लोप होता है। विकल्प-पक्ष में क्यच्/क्यङ् प्रत्यय का इस सूत्र से लोप होता है-समिधिता। ऐसे ही 'दृषद्' शब्द से -दृषधिता, दृषिदिता। यहां क्य' से क्यच् और क्यङ् प्रत्यय का सामान्यरूप से ग्रहण किया जाता है। णि-लोपः
(६) णेरनिटि।५१। प०वि०-णे: ६।१ अनिटि ७।१। स०-न इड् यस्य स:-अनिट, तस्मिन्-अनिटि (बहुव्रीहिः)। अनु०-अङ्गस्य, आर्धधातुके, लोप इति चानुवर्तते । अन्वय:-अङ्गस्य णेरनिटि आर्धधातुके लोप: ।
अर्थ:-अगस्य णि-प्रत्ययस्य अनिडादावार्धधातुके प्रत्यये परतो लोपो भवति।
उदा०-अततक्षत्। अररक्षत्। आटिटत् । आशिशत्। कारणा। हारणा। कारक: । हारक: । कार्यते। हार्यते। जीप्सति ।
आर्यभाषा अर्थ-(अङ्गस्य) अङ्सम्बन्धी (णे:) णिच् प्रत्यय को (अनिटि) अनिट्-आदि (आर्धधातुके) आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर (लोप:) लोपादेश होता है।
उदा०-अततक्षत् । उसने तनूकरण (छिलाई) कराया। अररक्षत् । उसने रक्षा कराई। आटिटत् । उसने भ्रमण (घुमाई) कराया। आशिशत् । उसने भोजन कराया। कारणा। कार्य कराना। हारणा। चोरी कराना। कारकः । करानेवाला। हारकः । हरानेवाला। कार्यते। उसके द्वारा कराया जाता है। हार्यते। उसके द्वारा हराया जाता है। ज्ञीप्सति । वह बतलाना चाहता है।