Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम्
( ९ ) अचायिषाताम् । चि+लुङ् । अट्+चि+चिल+ल् । अ+चि+सिच्+आताम् । अ+चि+इट्+स्+आताम् । अ+चै+इ+ष्+आताम्। अ+चाय्+इष्+आताम् । अचायिषाताम् । यहां पूर्वोक्त 'चि' धातु से 'लुङ्' (३ | ३ | ११०) से कर्मवाच्य में 'लुङ्' प्रत्यय है। 'लुङ्लङ्लृङ्क्ष्वडुदात्त:' (६।४।७१) से 'अट्' आगम, च्लि लुङि (३1१1४१) से 'चिल' प्रत्यय और 'च्ले: सिच्' (३ 1१1४२ ) से चिल' के स्थान में 'सिच्' आदेश होता है। इस सूत्र से 'सिच्' प्रत्यय के चिण्वत् होने से अङ्ग (चि) को 'अचो णिति' ( ७/२1११५ ) से वृद्धि होती है तथा सिच्' को 'इट्' आगम होता है । विकल्प- पक्ष में चिण्वद्भाव नहीं है- अचेषाताम् ।
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ऐसे ही 'डुदाञ् दाने' (जु०3०) धातु से - अदायिषाताम् । 'अदिषाताम्' यहां 'स्थाध्वोरिच्च' 'दा' को इत्त्व होता है। णिजन्त 'शमि' धातु से - अशामिषाताम्, अशमिषाताम्, अशमयिषाताम् । 'हन हिंसागत्योः' (अदा०प०) धातु से - अघानिषाताम् । 'अवधिषाताम् ' यहां 'लुङि च' (२।४।४३) से 'हन्' के स्थान में 'वध' आदेश होता है। 'अहसाताम्' यहां 'हन: सिच्' (१ । २।१४ ) से 'सिच्' को कित्त्व और 'अनुदात्तोपदेश०' (६ । ४ । ३७ ) से 'हन्' के अनुनासिक (न्) का लोप होता है। 'दृशिर् प्रेक्षणे' (भ्वा०प०) धातु सेअदर्शिषाताम्, अद्रक्षाताम् ।
(१०) चायिषीष्ट । चि+लिङ् । चि+सीयुट्+ल् । चि+सीय्+त। चि+सीय्+सुट्+त । चि+इट् + सी० + स् +त । चै+इ+सी+ष्+ट। चाय्+इ+षी+ष्+ट। चायिषीष्ट ।
यहां पूर्वोक्त चि' धातु से 'विधिनिमन्त्रणा० ' ( ३ । ३ । १६१ ) से कर्मवाच्य में लिङ्' प्रत्यय है । 'लिङः सीयुट् ' ( ३ । ४ । १०२ ) से सीयुट्' और 'सुट् तिथो:' (३।४1९०७) से 'सुट्' आगम है। इस सूत्र से 'सीयुट् ' को चिण्वत् होने से 'अचो णिति' (७/२ 1११५ ) से अङ्ग (चि) को वृद्धि होती है। विकल्प-पक्ष में चिण्वद्भाव नहीं है - चेषीष्ट ।
ऐसे ही- डुदाञ् दाने (जु०उ०) धातु से - दायिषीष्ट, दासीष्ट । णिजन्त 'शमि' धातु से - शामयिषीष्ट, शमिषीष्ट, शमयिषीष्ट । 'हन हिंसागत्योः' (अदा०प०) धातु से- घानिषीष्ट, यहां पूर्ववत् हकार कुत्व घकार होता है। वधिषीष्ट, यहां पूर्ववत् 'हन्' को 'वध' आदेश होता है। 'ग्रह उपादाने' (क्रया०प०) धातु से -ग्राहिषीष्ट, ग्रहीषीष्ट । यहां 'प्रहो लिटि दीर्घः' (७/२/३८ ) से 'इट्' को दीर्घ होता है। 'दृशिर् प्रेक्षणे' (वा०प०) धातु से - दर्शिषीष्ट, द्रक्षीष्ट ।
(११) चायिता । चि+लुट् । चि+ल् | चि+त | चि+तासि+त । चि+तास्+डा । चि+इट्+तास्+आ । चि+इ+त्+आ। चै+इ+त्+आ। चाय्+इ+त्+आ। चायिता ।
यहां पूर्वोक्त 'चि' धातु से ' अनद्यतने लुट्' (३ | ३ | १५ ) से कर्मवाच्य में 'लुट्' प्रत्यय है । स्यतासी लृलुटो:' ( ३ 1१1३३) से तासि विकरण- प्रत्यय होता है । 'लुट: प्रथमस्य डारौरस:' ( २/४/८५) से 'त' के स्थान में 'डा' आदेश होता है। इस सूत्र से