Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां कु और पथिन् शब्दों का 'कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से तत्पुरुष समास में कुशब्द को पथिन् शब्द उत्तरपद होने पर का-आदेश होता है। ऋक्पूरब्धू:पथामानक्षे (५।४।७४) से समासान्त 'अ' प्रत्यय और नस्तद्धिते (६।४।११४) से अंग के टि-भाग (इन्) का लोप होत है। ऐसे ही 'अक्ष' शब्द उत्तरपद होने पर-काक्षः। का-आदेशः
(२८) ईषदर्थे च।१०५। प०वि०-ईषदर्थे ७ १ च अव्ययपदम् । स०-ईषदोऽर्थ इति ईषदर्थ:, तस्मिन्-ईषदर्थे (षष्ठीतत्पुरुष:)। अनु०-उत्तरपदे, को:, का इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्पुरुषे ईषदर्थे च कोरुत्तरपदे काः।
अर्थ:-तत्पुरुषे समासे ईषदर्थे च वर्तमानस्य कुशब्दस्य स्थाने उत्तरपदे परत: का-आदेशो भवति।
उदा०-ईषद् मधुरमिति कामधुरम्। कालवणम् । अजादावपि परत्वात् का-आदेश एव भवति-ईषदम्लमिति काम्लम् । कोष्णम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में और (ईषदर्थे) ईषत्=थोड़ा अर्थ में (च) भी विद्यमान (को:) कुशब्द के स्थान में (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (काः) का आदेश होता है।
उदा०-कामधुरम् । थोड़ा मीठा। कालवणम् । थोड़ा नमक (खारा)।
अजादि शब्द उत्तरपद होने पर भी परत्व से का-आदेश ही होता है-ईषदम्लम् । थोड़ा खट्टा। कोष्णम्। थोड़ा गर्म। को: कत् तत्पुरुषेऽचि' (६।३।१०१) से प्राप्त कत्-आदेश नहीं होता है।
सिद्धि-कामधुरम् । यहां कु और मधुर शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से ईषद् अर्थ में विद्यमान कुशब्द को मधुर उत्तरपद होने पर का-आदेश होता है। ऐसे ही-कालवणम् आदि। कादेश-विकल्प:
(२६) विभाषा पुरुषे।१०६ । प०वि०-विभाषा ११ पुरुषे ७।१।