Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः
.५५५
सिद्धि - प्रशान् । प्र+शम्+ क्विप् । प्र+शम्+वि । प्र+शाम् +०। प्र+शान् +01
प्रशान्+सु । प्रशान्+ प्रशान् ।
यहां प्र-उपसर्ग पूर्वक 'शमु उपशमें' ( दि०प०) धातु से 'क्विप् च' ( ३।२।७६) से 'क्विप्' प्रत्यय है। इस सूत्र से अनुनासिकान्त 'शम्' धातु के उपधाभूत अकार को 'क्विप्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। 'मो नो धातो:' ( ८ / २ / ६४ ) से धातु के मकार को नकार आदेश होता है। 'हल्डन्याब्भ्यो दीर्घात् ' ( ६ 1१/६८) से 'सु' का लोप होता है। ऐसे ही - 'तमुकाङ्क्षायाम्' (दि०प०) धातु से - प्रतान् ।
( २ ) शान्तः । शम् + क्त । शम्+त। शाम्+त। शा ं +त। शान्+त। शान्त+सु ।
शान्तः ।
यहां 'शमु उपशमें' (दि०प०) धातु से 'निष्ठा' (३1२1१०२) से भूतकाल में 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से अनुनासिकान्त 'शम्' धातु के उपधाभूत अकार को झलादि 'क्त' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है । 'मोऽनुस्वारः' (८ । ३ । २३) से मकार को अनुस्वार और 'अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण:' (८/४/५८) से अनुस्वार को परसवर्ण नकार होता है ।
(३) शान्तवान् । यहां 'शमु उपशमें' (दि०प०) धातु से पूर्ववत् 'क्तवतु' प्रत्यय है। दीर्घ आदि कार्य पूर्ववत् हैं ।
(४) शान्त्वा । यहां 'शमु उपशमें (दि०प०) धातु से समानकर्तृकयोः पूर्वकाले (३।४।२१) से 'क्त्वा' प्रत्यय है। दीर्घ आदि कार्य पूर्ववत् हैं।
(५) शान्ति: । यहां 'शमे उपशमें' (दि०प०) धातु से 'स्त्रियां क्तिन्' (३ । ३ । ९४ ) से 'क्तिन्' प्रत्यय है। दीर्घ आदि कार्य पूर्ववत् हैं।
(६) शशान्तः । शम्+यङ् । शम्+शम्+य। श+शम्+य। श नुक्+शम्+य । शन्+शम्+० । शंशम्+लट् । शंशाम्+ तस् । शं शा ं +तस् । शंशान्तस्। शंशान्तरु | शंशान्तर् । शंशान्तः ।
यहां 'शमु उपशमें' (दि०प०) धातु से 'धातोरेकाचो हलादे: क्रियासमभिहारे यङ्' (३।१।२२) से 'यङ्' प्रत्यय, 'सन्यङो:' ( ६ 1१1९ ) से धातु को द्वित्व, 'नुगतोऽनुनासिकान्तस्य' (७/४/८५) से अभ्यास को 'नुक्' आगम, 'यङोऽचि च (२।४/७४) से यङ् का लुक् होता है। तत्पश्चात् यङ्लुगन्त 'शंशम्' धातु से 'वर्तमाने लट्' (३ / २ / १२३ ) से 'लट्' प्रत्यय, तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से 'तस्' लादेश, 'सार्वधातुकमपित्' (१।२।४ ) से 'तस्' को ङित्त्व होकर इस सूत्र से अनुनासिकान्त 'शंशम्' धातु के उपधाभूत अकार को झलादि ङित् 'तस्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। ऐसे ही 'तमु काङ्क्षायाम् ' ( दि०प०) धातु से - तन्तान्तः ।