Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः
५५७ से इसे रपरत्व, 'हलि च' (८।३।७७) से दीर्घत्व और कुहोश्चुः' (७।४।६२) से अभ्यास को चुत्व होता है।
(४) जिघांसति । यहां हन् हिंसागत्यो:' (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से हन्' धातु के उपधाभूत अकार को झलादि सन्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। तत्पश्चात् सन्यो :' (६।१।९) से द्वित्व, अभ्यासाच्च' (७ ३ १५५) से हान' के हकार के चुत्व घकार, कुहोश्चः' (७।४।६२) से अभ्यास के हकार के चुत्व झकार और 'अभ्यासे चर्च (८।४।५४) से जश्त्व जकार होता है।
(५) अधिजिगांसते । यहां अधि-उपसर्गपूर्वक इङ् अध्ययने (अदा०आ०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है। इङश्च' (२।४।४८) से 'इ' को 'गमि' आदेश होता है। इस सूत्र से 'गम्' धातु के उपधाभूत अकार का झलादि सन्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। यहां 'इङ्' के स्थान में विहित गमि' आदेश का ग्रहण है, 'गम्लु गतौ (भ्वा०प०) धातु का नहीं। दीर्घ-विकल्पः
(१७) तनोतेर्विभाषा।१७। प०वि०-तनोते: ६।१ विभाषा ११ । अनु०-दीर्घः, अङ्गस्य, झलि, उपधाया:, सनि इति चानुवर्तते । अन्वय:-तनोतेरङ्गस्य उपधाया झलि सनि विभाषा दीर्घः ।
अर्थ:-तनोतेरङ्गस्य उपधाया झलादौ सनि परतो विकल्पेन दी? भवति।
उदा०-तितांसति, तितंसति।
आर्यभाषा: अर्थ-(तनोते:) तनु इस (अङ्गस्य) अंग की (उपधायाः) उपधा को (झलि) झलादि (सनि) सन् प्रत्यय परे होने पर (विभाषा) विकल्प से (दीर्घ:) दीर्घ होता है।
उदा०-तितांसति, तितंसति । वह विस्तार करना चाहता है।
सिद्धि-तितांसति। यहां 'तनु विस्तारे' (तना०प०) धातु से 'धातोः कर्मण: समानकर्तकादिच्छायां वा' (३।११७) से सन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से तन' अंग के उपधाभूत अकार को झलादि सन्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। तत्पश्चात् 'सन्यङो:' (६।१।९) से धातु को द्वित्व, सन्यत:' (७।४।७९) से अभ्यास को इत्त्व'
और 'नश्चापदान्तस्य झलि (८।४।२७) से धातु के नकार को अनुस्वार होता है। विकल्प-पक्ष में दीर्घ नहीं है-तितंसति ।
और नाश्चापदान्तस्य झलि ।।२७)