Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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५६१ अर्थ:-ज्वरत्वरस्रिव्यविमवामङ्गानां वकारस्य उपधायाश्च स्थाने क्वौ झलादौ क्डिति, च प्रत्यये परत: ऊडादेशो भवति ।
उदा०-(ज्वर:) क्विप्-जू:, जूरौ, जूर: । झलादौ किति-जूर्तिः । (त्वरः) क्विप्-तू: तूरौ, तूर: । झलादौ किति-तूर्ति: । (त्रिवि:) क्विप्-त्:, स्रुवौ, सुवः । झलादौ किति-सूति: । (अवि:) क्विप्-ऊ., उवौ, उवः । झलादौ किति-ऊति:। (मव:) क्विप्-मू:, मुवौ, मुव: । झलादौ किति-मूतिः।
आर्यभाषा: अर्थ-(ज्वरत्वर०) ज्वर, त्वर, त्रिवि, अवि और मव (अङ्गस्य) अंगों के (व:) वकार और (उपधायाः) उपधा के स्थान में (च) भी (क्विझलो:) क्विप् और झलादि (क्ङिति) कित्, ङित् प्रत्यय परे होने पर (ऊ) ऊ आदेश होता है।
__ उदा०-(ज्वर) क्विप्-जू, जूरौ, जूरः । जू: रोगी। झलादि कित्-जूर्ति: । रोगी होना। (त्वर) क्विप्-तू: तूरौ, तूरः । तू:-सम्भ्रान्त । झलादि कित्-तूर्तिः । सम्भ्रान्ति। (त्रिवि) क्विप्-खूः, स्रुवौ, जुवः । =गति/शोषण करनेवाला । झलादि कित्-सूतिः । गति/शोषण करना। (अवि) क्विप्-ऊ., उवौ, उवः । ऊ: रक्षा आदि करनेवाला। झलादि कित-ऊति: । रक्षा आदि करना। (मव) क्विप्-मू, मुवौ, मुव: । मू:=बांधनेवाला। झलादि कित्-मूति: । बांधना।
सिद्धि-(१) जू:। ज्वर+क्विम्। ज् ऊठ् +वि। ज ऊ र+0। जूर+सु। जूर+0 । जूः।
यहां ज्वर रोगे' (भ्वा०प०) धातु से क्विप् च' (३।२।७६) से क्विप्' प्रत्यय है। इस सूत्र से ज्वर्' के वकार और उपधाभूत अकार को 'क्विप्' प्रत्यय परे होने पर ऊठ' आदेश होता है। हल्याब्भ्यो दीर्घात्' (६।१।६८) से सु' का लोप और खरवसानयोर्विसर्जनीयः' (८।३।१५) से रेफ को विसर्जनीय आदेश होता है। ऐसे ही-त्रित्वरा सम्भमे' (भ्वा०आ०) धातु से-तू:, 'त्रिवु गतिशोषणयोः' (दि०प०) धातु से-स्तू:, 'अव रक्षणादिषु' (भ्वा०प०) धातु से-ऊ., 'मव बन्धने (भ्वा०प०) धातु से-मूः ।
(२) जूर्तिः । ज्वर+क्तिन्। ज्वर+ति। ज् ऊठ् +ति। जूर+ति। जूर्ति+सु । जूर्तिः।
यहां ज्वर रोगे' (भ्वा०प०) धातु से 'स्त्रियां क्तिन्' (३।३।९४) से 'क्तिन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'ज्वर' के वकार और उपधाभूत अकार को झलादि क्तिन् प्रत्यय परे होने पर ऊ आदेश होता है। ऐसे ही- त्वर' से-तूर्ति:, त्रिवु से-स्रुतिः, अव से-ऊति:, मव से-मूतिः ।