Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
५०८
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (को:) कु-शब्द के स्थान में (अचि) अजादि शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (कत्) कत् आदेश होता है।
उदा०-कदजः । कुत्सित=निन्दित बकरा। कदश्वः । कुत्सित घोड़ा। कदुष्ट्रः । कुत्सित ऊंट। कदन्नम् । कुत्सित अन्न।
सिद्धि-कदजः । यहां कु और अज शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से तत्पुरुष समास में 'कु' शब्द को अजादि 'अज' शब्द उत्तरपद होने पर कत्' आदेश होता है। झलां जशोऽन्ते' (८।३।३९) से 'कत्' के तकार को 'जश्' दकार होत है। ऐसे ही-कदश्व: आदि। कत्-आदेश:
(२५) रथवदयोश्च ।१०२। प०वि०-रथ-वदयो: ७।२ च अव्ययपदम्। स०-रथश्च वदश्च तौ रथवदौ, तयो:-रथवदयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-उत्तरपदे, को:, कत्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्पुरुषे को रथवदयोश्चोत्तरपदयो: कत्।
अर्थ:-तत्पुरुष समासे कुशब्दस्य स्थाने रथवदयोश्चोत्तरपदयो: परत: कदादेशो भवति।
उदा०-(रथ:) कुत्सितो रथ इति कद्रथः। (वद:) कुत्सितो वद इति कद्वदः।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (को:) कु-शब्द के स्थान में (रथवदयोः) रथ और वद शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (च) भी (कत्) कत् आदेश होता है।
__उदा०-(रथ) कद्रथः । कुत्सित=निन्दित रथ। (वद) कद्वदः । कुत्सित बोलनेवाला।
सिद्धि-कद्रथः । यहां कु और रथ शब्दों का कुगतिप्रादय' (२।२।१८) से तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से तत्पुरुष समास में 'कु' शब्द को 'रथ' उत्तरपद होने पर कत्' आदेश होता है। ऐसे ही 'वद' शब्द से उत्तरपद होने पर-कद्वदः । कत्-आदेशः
(३६) तृणे च जातौ।१०३। प०वि०-तृणे ७१ च अव्ययपदम्, जातौ ७१। स०-उत्तरपदे, को:, कत्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते ।