Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् नकार का लोप और 'अच:' (६।४।१३८) से 'अञ्चु' के अकार का भी होता है। 'अञ्चु' का केवल 'चु' शेष रहता है। लुप्त नकार तथा लुप्त अकारवाली 'अञ्चु' धातु का चौ' नाम से ग्रहण किया गया है। इस सूत्र से पूर्वपद दधि के इकार अण् को उक्त अञ्चति (चु) शब्द परे होने पर दीर्घ होता है। ऐसे ही-दधीचा, दधीचे। मधु शब्द से-मधूच:, मधूचा, मधूचे। दीर्घ:
(२५) सम्प्रसारणस्य।१३६ । वि०-सम्प्रसारणस्य ६।१। अनु०-उत्तरपदे, संहितायाम्, पूर्वस्य, अण:, दीर्घ इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां सम्प्रसारणस्य पूर्वस्याण उत्तरपदे दीर्घः ।
अर्थ:-संहितायां विषये सम्प्रसारणान्तस्य पूर्वपदस्याण उत्तरपदे परतो दीर्घो भवति।
उदा०-कारीषगन्धीपुत्रः, कारीषगन्धीपतिः। कौमुदगन्धीपुत्रः । कौमुदगन्धीपतिः।
__ आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) संहिता विषय में (सम्प्रसारणस्य) सम्प्रसारण जिसके अन्त में है, उस (पूर्वस्य) पूर्ववर्ती पद के (अण:) अण् को (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (दीर्घ:) दीर्घ होता है।
उदा०-कारीषगन्धीपत्रः । कारीषगन्ध्या का पुत्र । कारीषगन्धीपतिः । कारीषगन्ध्या का पति । कौमुदगन्धीपुत्र: । कौमुदगन्ध्या का पुत्र । कौमुदगन्धीपतिः । कौमुदगन्ध्या का पति।
सिद्धि-कारीषगन्धीपुत्रः। यहां कारीषगन्ध्या और पुत्र शब्दों का 'षष्ठी' (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। कारीषगन्ध्या' शब्द में 'अणिशोरनार्षयोर्गुरूपोत्तमयो: ष्यङ् गोत्रे (४।१।७८) से गोत्रापत्य अर्थ में अण्-प्रत्यय को ध्यङ्' आदेश और 'प्यङ: सम्प्रसारणं पुत्रपत्योस्तत्पुरुषे' (६।१।१३) से व्यङ्' के यकार को इकार सम्प्रसारण होता है। इस सूत्र से सम्प्रसारणान्त कारीषगन्धि शब्द के अण (इकार) को पुत्र उत्तरपद होने पर दीर्घ होता है-कारीषगन्धीपुत्रः। ऐसे हीकारीषगन्धीपतिः । कौमुदगन्धीपुत्र:, कौमुदगन्धीपतिः ।
।।इति संहिताधिकारीयदीर्घप्रकरणम् ।। इति पण्डितसुदर्शनदेवाचार्यविरचिते पाणिनीयाष्टाध्यायीप्रवचने
षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः ।