Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-उदुम्बरावती। यहां उदुम्बर शब्द से नद्यां मतुप्' (४।२।८५) से चातुरर्थिक मतुप् प्रत्यय है। संज्ञायाम्' (८।२।११) से मतुप के मकार को वकार आदेश होता है। इस सूत्र से संज्ञाविषय में बहुत अचोंवाले उदुम्बर शब्द के पूर्ववर्ती अकार अण को मतुम् प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। ऐसे ही-मशकावती आदि।
विशेष: (१) उदुम्बरावती-व्यास और रावी के बीच में त्रिगर्त (कांगड़ा) का जहां से रास्ता गया है, वहां गुरुदासपुर, पठानकोट और नूरपुर इलाके में औदुम्बरों के सिक्के मिले हैं। औदुम्बरों (क्षत्रिय) के देश की ही किसी नदी का नाम उदुम्बराती होना चाहिये।
(२) मशकावती । मशकावती नाम मस्सग या मस्सक से सम्बन्धित है जो गंधार के आश्वकायनों की राजधानी थी। यूनानियों के अनुसार मस्सग का किला पहाड़ी था, जिसके नीचे नदी बहती थी। अश्वक लोग स्वात नहीं के काठे पर रहते थे उन्होंने दुरासह मशकावती (मस्सक) के दुर्ग में युद्ध का साज सजाकर अभियान करते हुए सिकन्दर का मार्ग छेद दिया था।
(३) वीरणावती-वीरणावती नदी ही प्राचीन वरणावती ज्ञात होती है, आश्वकायनों की शान्तिकाल की राजधानी मशकावती थी किन्तु संकटकाल के लिये सुदृढ़ पहाड़ी दुर्ग 'वरणा' था। इसी के पास वरणावती नदी होनी चाहिये।
(४) पुष्करावती-सुवास्तु और कुंभा के संगम पर स्थित पच्छिमी गन्धार की राजधानी थी जिसके प्राचीन अवशेष आधुनिक चारसदा और प्राङ् में पाये गये हैं। इस दृष्टि से संभव है गौरीसुवास्तु संगम तक की सम्मिलित धारा पुष्कलावती कही जाती थी (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ५४-५५)
(५) अमरावती-इन्द्र की पुरी का नाम है।
(६) यहां 'मतुप्' प्रत्यय है, अत: उत्तरपदे' की अनुवृत्ति नहीं की जाती है। दीर्घः
(७) शरादीनां च।१२०। प०वि०-शर-आदीनां ६।३ च अव्ययपदम् । स०-शर आदिर्येषां ते शरादय:, तेषाम्-शरादीनाम् (बहुव्रीहिः) ।
अनु०-पूर्वस्य, दीर्घः, अणः, संहितायाम्, संज्ञायाम्, मताविति चानुवर्तते।
अन्वय:-संहितायां संज्ञायां शरादीनां च मतौ दीर्घः ।
अर्थ:-संहितायां संज्ञायां च विषये शरादीनां च शब्दानां पूर्वस्याणो मतौ परतो दी| भवति ।