Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः
४६७ (२) औदवाहि: । यहां उदक और वाह शब्दों का उपपदमतिङ्' (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। उदक उपपद वह प्रापणे (भ्वा०प०) धातु से कर्मण्यण्' (३।२।१) से 'अण्' प्रत्यय है। 'अत उपधाया:' (७।२।११६) से उपधावृद्धि होती है। शेष कार्य पूर्ववत् है। उदादेश:
(१३) पेषवासवाहनधिषु च ।५८। प०वि०-पेषम्-वास-वाहन-धिषु ७।३ च अव्ययपदम्।
स०-पेषं च वासश्च वाहनश्च धिश्च ते पेषंवासवाहनधियः, तेषुपेषंवासवाहनधिषु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-उत्तरपदे, उदकस्य, उद इति चानुवर्तते । अन्वय:-उदकस्य पेषंवासवाहनधिषु चोत्तरपदेषु उद: ।
अर्थ:-उदकस्य स्थाने पेषंवासवाहनधिषु चोत्तरपदेषु उद आदेशो भवति।
उदा०- पिषम्) उपदेषं पिनष्टि। उदकेन पिनष्टीत्यर्थः। (वास:) उदकस्य वास इति उदवास: । (वाहन:) उदकस्य वाहन इति उदवाहनः । (धि:) उदकं धीयतेऽस्मिन्निति-उदधिः कुम्भः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(उदकस्य) उदक शब्द के स्थान में (पषवासवाहनधिषु) पेषम्, वास, वाहन और धि शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (उद:) उद आदेश होता है।
उदा०-पिषम्) उपदेषं पिनष्टि। जल के सहाय से औषध आदि को पीसता है। (वास) उदवास: । जल का निवास। (वाहन) उदवाहनः । जल का वाहन (गाड़ी)। (धि) उदधि: कुम्भ:। जिसमें जल रखा जाता है वह घट आदि। यहां उदधि शब्द का समुद्र अर्थ नहीं है क्योंकि संज्ञाविषय में पूर्वसूत्र से ही उद' आदेश सिद्ध है।
सिद्धि-(१) उदपेषम् । यहां उदक और पेषम् शब्दों का उपपदमतिङ्' (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। उदक उपपद होने पर पिष्लु संचूर्णने (रुधा०प०) धातु से स्नेहने पिष:' (३।४।३८) से णमुल्' प्रत्यय है। इस सूत्र से उदक' के स्थान में पेषम् उत्तरपद होने पर उद' आदेश होता है।
(२) उदवास: । यहां उदक और वास शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से ष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से उदक' के स्थान में वास' उत्तरपद होने पर उद' आदेश होता है। ऐसे ही-उदवाहनः।