Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (४) फाल्गुनीपौर्णमासी। यहां फाल्गुनी और पौर्णमासी शब्दों का विशेषणं विशेष्येण बहुलम्' (२।१।५७) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से वेदविषय में डीप्रत्ययान्त फाल्गुनी शब्द को पौर्णमासी उत्तरपद होने पर बहुलवचन से ह्रस्व आदेश नहीं होता है। ऐसे ही-जगतीच्छन्दः ।।
(५) शिलवहम् । यहां शिला और वह शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से संज्ञाविषय में आबन्त 'शिला' शब्द को वह-उत्तरपद होने पर ह्रस्व आदेश होता है। ऐसे ही-शिलप्रस्थम् ।
(६) लोमकागृहम् । यहां लोमका और गृह शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सत्र से संज्ञाविषय में आबन्त 'लोमका' शब्द को गृह उत्तरपद होने पर बहुलवचन से ह्रस्व आदेश नहीं होता है। ऐसे ही-लोमकाषण्डम् ।
(७) अजक्षीरम् । यहां अजा और क्षीर शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से वेदविषय में आबन्त 'अजा' शब्द को क्षीर उत्तरपद होने पर ह्रस्व आदेश होता है।
(८) ऊर्णमदा: । यहां ऊर्णा और मदीयसी शब्दों का अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है-ऊर्णावद् म्रदीयसीति ऊर्णम्रदाः। इस सूत्र से वेदविषय में आबन्त ऊर्णा' शब्द को म्रदीयसी उत्तरपद होने पर ह्रस्व आदेश होता है।
'ईयसी' शब्द को आकार आदेश छान्दस है। “तैत्तिरीयास्तु दीर्घमधीयतेऊर्णामृदसं चास्तृणामीति” (पदमञ्जरी)।
(९) ऊर्णासूत्रम् । यहां ऊर्णा और सूत्र शब्द का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से वेदविषय में आबन्त ऊर्णा' शब्द को सूत्र-उत्तरपद होने पर बहुलवचन से ह्रस्व आदेश नहीं होता है। बहुलं हस्वादेशः
(१६) त्वे च।६४। प०वि०-त्वे ७१ च अव्ययपदम्।
अनु०-ह्रस्व:, झ्यापो:, छन्दसि इति चानुवर्तते, संज्ञायामिति च नानुवर्ततेऽर्थासम्भावात्।
अन्वय:-छन्दसि ड्यापोस्त्वे च बहुलं ह्रस्व: ।
अर्थ:-छन्दसि विषये ड्यन्तस्य आबन्तस्य च शब्दस्य त्व-प्रत्यये च परतो बहुलं ह्रस्वादेशो भवति ।