Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः
४६३ पादे च' (उणा० ४।१३३) से 'इण्' प्रत्यय है। इस सूत्र से पाद के स्थान में आजि उत्तरपद होने पर पद' आदेश होता है।
(२) पदाति: । यहां 'आति:' शब्द में 'अत सातत्यगमने' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् इण्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) पदगः । यहां 'पाद' और 'ग' शब्दों का उपपदमतिङ्' (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। 'गः' शब्द में वा०-'डप्रकरणेऽन्येष्वपि दृश्यते' (३।२।४८) से पाद उत्तरपद होने पर भी गम्लु गतौ (भ्वा०प०) धातु से 'ड' प्रत्यय है। वा०-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६।४।१४३) से गम्' के टि-भाग (अम्) का लोप होता है। इस सूत्र से पाद के स्थान में 'ग' उत्तरपद होने पर 'पद' आदेश होता है।
(४) पदोपहतः। यहां पाद और उपहत शब्दों का कर्तकरणे कृता बहुलम् (२।१।३९) से तृतीयातत्पुरुष समास है। इस सूत्र से पाद के स्थान में उपहत उत्तरपद होने पर 'पद' आदेश होता है। पद्-आदेशः
(८) पद् यत्यतदर्थे ।५३। प०वि०-पद् १।१ यति ७।१ अतदर्थे ७।१।
स०-तस्मै इदमिति तदर्थम्, न तदर्थमिति अतदर्थम्, तस्मिन्-अतदर्थे (चतुर्थीगर्भितनञ्तत्पुरुषः)।
अनु०-उत्तरपदे, पादस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-पादस्य पद् अतदर्थे यति।
अर्थ:-पादस्य स्थाने पद्-आदेशो भवति, तदर्थवर्जिते यति प्रत्यये परत:।
उदा०-पादौ विध्यन्तीति पद्या: शर्करा:, पद्या: कण्टका: ।
आर्यभाषा: अर्थ-(पादस्य) पाद शब्द के स्थान में (पद्) पद् आदेश होता है (अतदर्थे) यदि तदर्थ से भिन्न (यति) यत् प्रत्यय परे हो।
उदा०-पद्या: शर्कराः । पांवों को बींधनेवाली कांकर । पद्या: कण्टका: । पांवों को बींधनेवाले कांटे।
सिद्धि-पद्या: । यहां पाद शब्द से विध्यत्यधनुषा' (४।४।८३) से विध्यति-अर्थ में यत्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'पाद' के स्थान में 'यत्' प्रत्यय परे होने पर पद् आदेश होता है।