Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
आर्यभाषाः अर्थ-(मिश्र) मिश्रीकरणवाची (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (पललसूपशाकम् ) पलल, सूप और शाक शब्द (उत्तरपदादि:, उदात्त:) उत्तरपद में आद्युदात्त होते हैं। उदा०- - ( पलल) गुडपलेलम् । गुड़ मिला हुआ मांस । घृत॒पय॑लम्। घी मिला हुआ मांस। (सूप) घृ॒त॒सूप॑। घी मिली हुई दाल। मूलकसूपः । मूळी मिली हुई दाल। (शाक) घृ॒त॒शाक॑म्। घी मिला हुआ साग। मुद्ग॒शाक॑म् । मूंग मिला हुआ साग ।
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सिद्धि-गुड॒पलेलम् । यहां गुड और पलल शब्दों का 'भक्ष्येण मिश्रीकरणम्' (२ ।१ ।३४) से मिश्रीकरणवाची तृतीया तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से उक्त तत्पुरुष समास में 'पलल' उत्तरपद को आद्युदात्त स्वर होता है। ऐसे ही - घृतपलेलम् आदि ।
आद्युदात्तम्
(१६) कूलसूदस्थलकर्षाः संज्ञायाम् । १२६ । प०वि०-कूल-सूद-स्थल-कर्षाः १।३ संज्ञायाम् ७ ।१ । सo - कूलं च सूदं च स्थलं च कर्षश्च ते - कूलसूदस्थलकर्षाः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु०-उदात्त:, उत्तरपदादि:, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते । अन्वयः -संज्ञायां तत्पुरुषे कूलसूदस्थलकर्षा उत्तरपदादिरुदात्तः । अर्थ:-संज्ञायां विषये कूलसूदस्थलकर्षा उत्तरपदानि आद्युदात्तानि
भवन्ति ।
उदा०- (कूलम् ) दा॒क्षिकूल॑म् । माहकिकूल॑म् । ( सू॒दम् ) दे॒व॒सूद॑म् । भाजीसूद॑म्। (स्थलम्) दा॒ण्डायन॒स्थली । माहकिस्थल । ( कर्षः) दाक्षिकर्षः । एतानि ग्रामनामानि सन्ति ।
आर्यभाषाः अर्थ- (संज्ञायाम् ) संज्ञा विषय ( तत्पुरुषे ) तत्पुरुष समास में (कूलसूदस्थलकर्षः) कूल, सूद, स्थल और कर्ष शब्द (उत्तरपदादिः, उदात्त:) उत्तरपद में आद्युदात्त होते हैं।
उदा०- (कूल) दक्षिकूल॑म् । महक॒कूल॑म् । (सूद) दे॒व॒सूर॑म् । भजीसूद॑म् । ( स्थल) दण्डायन॒स्थली । माहकिस्थली । ( कर्ष) दाक्षिकर्ष: । ये 'दाक्षिकूल' आदि ग्रामों की संज्ञायें हैं ।
सिद्धि-दा॒क्षिकूल॑म् । यहां दाक्षि और कूल शब्दों का षष्ठी' (२ 1२1८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से संज्ञा-विषयक तत्पुरुष समास में 'कूल' उत्तरपद को आद्युदात्त स्वर होता है। ऐसे ही - माहकिकूल॑म् आदि ।