Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-द्वादश। द्वि+औ+दशन्+जस्। द्वि+दश। दव् आ+दश। द्वादशन्+सु। द्वादश।
यहां द्वि और दशन् शब्दों का चार्थे द्वन्द्वः' (२।२।२९) से समाहारद्वन्द्व समास है। इस सूत्र से द्वि-शब्द को संख्यावाची दशन् शब्द उत्तरपद होने पर आकार आदेश होता है। स नपुंसकम् (२।४।१७) से यहां समाहारद्वन्द्व में नपुंसकलिङ्ग नहीं होता है क्योंकि लिंग पर शासन करना सम्भव नहीं है क्योंकि वह लोकाश्रित है-लिङ्गमशिष्यं लोकाश्रयत्वाल्लिङ्गस्य'। ऐसे ही-'द्वाविशतिः' और 'अष्टादश' आदि। त्रयसादेश:
(३) त्रेस्त्रयः।४८। प०वि०-त्रे: ६१ त्रय: ११ । अनु०-उत्तरपदे, संख्यायाम्, अबहुव्रीह्यशीत्योरिति चानुवर्तते। अन्वय:-त्रे: संख्यायाम् उत्तरपदे त्रयः, अबहुव्रीह्यशीत्योः ।
अर्थ:-त्रि-शब्दस्य संख्यावाचिनि शब्दे उत्तरपदे त्रयसादेशो भवति, बहुव्रीहिसमासेऽशीतिशब्दे चोत्तरपदे न भवति ।
उदा०-त्रयश्च दश च एतयो: समाहार:-त्रयोदश। त्रयोविंशतिः । त्रयस्त्रिंशत् । 'त्रयः' इति सकारान्तोऽयमादेश: (त्रयस्) ।
आर्यभाषा अर्थ-त्रि:) त्रि-शब्द के स्थान में (संख्यायाम्) संख्यावाची शब्द उत्तरपद होने पर (त्रय:) त्रयस् आदेश होता है (अबहुव्रीह्यशीत्योः) बहुव्रीहि समास में तथा अशीति शब्द उत्तरपद होने पर तो नहीं होता है।
उदा०-त्रयोदश । तीन और दश-तेरह। त्रयोविंशतिः । तीन और बीस-तेईस । त्रयस्त्रिंशत् । तीन और तीस-तैंतीस ।
सिद्धि-त्रयोदश । यहां त्रि और दश शब्दों का चार्थे द्वन्द्वः' (२।२।२९) से समाहार द्वन्द्वसमास है। इस सूत्र से त्रि-शब्द के स्थान में संख्यावाची दश-शब्द उत्तरपद होने पर त्रयस्' आदेश होता है। उसके सकार को ससजषो रुः' (८।२।६६) से रुत्व, हशि च' (६।१।११४) से रेफ को उत्व और 'आद्गुणः' (६।१।८७) से अकार-उकार को गुणरूप एकादेश (ओ) होता है। ऐसे ही-त्रयोविंशति: आदि। आदेश-विकल्पः
(४) विभाषा चत्वारिंशत्प्रभृतौ सर्वेषाम्।४६ | प०वि०-विभाषा ११ चत्वारिंशत्प्रभृतौ ७।१ सर्वेषाम् ६।३ ।