Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः
४४५ (२) दत्तापाशा । यहां दत्ता शब्द से याप्ये पाश' (५।३।४७) से पाशप्' प्रत्यय है। तसिलादिष्वाकृत्वसूच:' (६।३।३५) से संज्ञावाची दत्ता-शब्द को पुंवद्भाव प्राप्त था। इस सूत्र से उसका प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही-गुप्तापाशा।
(३) दत्तायते । यहां दत्ता शब्द से कर्तुः क्यङ् सलोपश्च' (३।१।११) से आचार अर्थ में क्यङ्' प्रत्यय है। क्यङ्मानिनोश्च (६।३।३६) से संज्ञावाची दत्ता शब्द को पुंवद्भाव प्राप्त था। इस सूत्र से उसका प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही-गुप्तायते, दत्तामानिनी, गुप्तामानिनी।
(४) पञ्चमीभार्यः । यहां पञ्चमी और भार्या शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। 'पञ्चमी' शब्द में पञ्चन शब्द से नान्तादसंख्यादेर्मट' (५।२।४९) से पूरणार्थक डट्-प्रत्यय और इसे मट् आगम है। प्रत्यय के टित् होने से स्त्रीत्व-विवक्षा में टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से डीप् प्रत्यय होकर 'पञ्चमी' शब्द सिद्ध होता है। इस सूत्र से भाषितपुंस्क, ऊप्रत्यय से रहित, पूरण-प्रत्ययान्त पीलिङ्ग पञ्चमी शब्द को स्त्रीलिङ् भार्या शब्द उत्तरपद होने पर पुंवद्भाव नहीं होता है। स्त्रिया: पुंवद्' (६।३।३४) से पुंवद्भाव प्राप्त था, इस सूत्र से उसका प्रतिषेध होता है। ऐसे ही-दशमीभार्यः ।
पञ्चमीपाशा आदि शब्दों की सिद्धि दत्तापाशा आदि शब्दों के समान है। पुंवद्भाव-प्रतिषेधः(६) वृद्धिनिमित्तस्य च तद्धितस्यारक्तविकारे।३६ ।
प०वि०-वृद्धिनिमित्तस्य ६१ च अव्ययपदम्, तद्धितस्य ६।१ अरक्तविकारे ७१।
स०-वृद्धेर्निमित्तं यस्मिन् स:-वृद्धिनिमित्त:, तस्य-वृद्धिनिमित्तस्य (बहुव्रीहि:)। रक्तं च विकारश्च एतयो: समाहारो रक्तविकारम्, न रक्तविकारमिति अरक्तविकारम्, तस्मिन्-अरक्तविकारे (समाहारद्वन्द्वगर्भितनञ्तत्पुरुषः)।
अनु०-उत्तरपदे, स्त्रिया:, पुंवत्, अभाषितपुंस्कादनूङ, न इति चानुवर्तते।
___ अन्वय:-अरक्तविकारे वृद्धिनिमित्तस्य च तद्धितस्य भाषितपुंस्कादनूङ: स्त्रिया उत्तरपदे पुंवन्न।
अर्थ:-रक्ते विकारे चार्थे विहितो यो वृद्धिनिमित्तस्तद्धितप्रत्यय:, तदन्तस्य भाषितपुंस्कादनूङ: यस्माद् भाषितपुंस्काच्छब्दाद् ऊप्रत्ययो न