Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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रूपम्
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षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः
४५५ उत्तरपदम्
भाषार्थ: चेलट् (१) श्रेयसीचेली, श्रेयसिचेली गर्हित श्रेयसी नारी।
(२) विदुषीचेली, विदुषिचेली गर्हित विदुषी नारी। ब्रुवः (१) श्रेयसीब्रुवा, श्रेयसिब्रुवा श्रेयसी कहानेवाली नारी।
(२) विदुषीब्रुवा, विदुषिब्रुवा विदुषी कहानेवाली नारी। गोत्रम् (१) श्रेयसीगोत्रा, श्रेयसिगोत्रा जातिमात्र से श्रेयसी नारी।
(२) विदुषीगोत्रा, विदुषिगोत्रा जातिमात्र से विदुषी नारी। मत: (१) श्रेयसीमता, श्रेयसिमता श्रेयसी मानी हुई नारी।
(२) विदुषीमता, विदुषिमता विदुषी मानी हुई नारी। (१) श्रेयसीहता, श्रेयसिहता हिंसित श्रेयसी नारी।
(२) विदुषीहता, विदुषिहता निन्दित विदुषी नारी।
आर्यभाषा: अर्थ-(उगित्) उगित् से सम्बन्धित (नद्याः) नदीसंज्ञक शब्द को (च) भी (घ०हतेषु) घ, रूप, कल्प, चेलट, ब्रुव, गोत्र, मत और हत शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (ह्रस्व:) ह्रस्व होता है।
उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृतभाग में देख लेवें।
सिद्धि-श्रेयसीतरा। यहां श्रेयसी शब्द से 'द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनो (५।३।५७) से 'तरप्' प्रत्यय है। 'तरप्' प्रत्यय की तरप्तमपौ घः' (१।१।२२) से 'घ' संज्ञा है। इस सूत्र से घ-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर उगित्सम्बन्धी नदीसंज्ञक श्रेयसी शब्द को विकल्प से ह्रस्व होता है। ह्रस्व पक्ष में-श्रेयसितरा।
प्रशस्य+ईयसुन्। श्र+ईयस् । श्रेयस् । श्रेयस्+डीप् । श्रेयसी+सु। श्रेयसी। प्रशस्य शब्द से प्रशस्यस्य श्रः' (५।३।६०) से 'ईयसुन्- प्रत्यय और उसे श्र-आदेश होता है। प्रत्यय के उगित् होने से उगितश्च' (४।१।६) से स्त्रीलिङ्ग में 'डीप्' प्रत्यय होता है। डीबन्त श्रेयसी शब्द की 'यू स्त्र्याख्यौ नदी' (१।४।२) से नदी संज्ञा है।
(२) विदुषीतरा। यहां विदुषी शब्द से पूर्वपत् 'तरप्' प्रत्यय है। विदुषी' शब्द की सिद्धि अधोलिखित है
विद्+लट् । विद्+शप्+शतृ। विद्+o+वसु । विद्+वस् । विद्वस् । विद् उ अस् । विद्उस् । विदुष्+डीप् । विदुष्+ई। विदुषी+सु। विदुषी।
यहां विद ज्ञाने' (अदा०प०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय, 'लट: शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे (३।२।१२४) से लट्' के स्थान में