Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ब्राह्मणी। (मत) ब्राह्मणिमता। मानी हुई ब्राह्मणी। (हत) ब्राह्मणिहता। निन्दित ब्राह्मणी।
यहां घ, रूप और कल्प ये तीन प्रत्यय हैं और चेलड् आदि उत्तरपद हैं। अत: यहां उत्तरपद का यथासम्भव सम्बन्ध है।।
सिद्धि-(१) ब्राह्मणितरा। ब्राह्मणी+तरप्। ब्राह्मणी+तर। ब्राह्मणितर+टाम्। ब्राह्मणितरा+सु। ब्राह्मणितरा।
यहां ब्राह्मणी शब्द से द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनौ' (५।३।५७) से तरप्' प्रत्यय है। 'तरप्तमपौ घः' (१।१।२२) से तरप्' प्रत्यय की 'घ' संज्ञा है। इस सूत्र से भाषितपुंस्क, अनेकाच्, डी-प्रत्ययान्त ब्राह्मणी शब्द को घ-संज्ञक तरप्' प्रत्यय परे होने पर ह्रस्व होता है। ब्राह्मणी' शब्द में पुंयोगादाख्यायाम् (४।१।४८) से 'डीए' प्रत्यय है।
(२) ब्राह्मणितमा । यहां ब्राह्मणी शब्द से 'अतिशायने तमबिष्ठनौ' (५।३।५५) से 'तमप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) ब्राह्मणिरूपा । यहां ब्राह्मणी शब्द से प्रशंसायां रूपप्' (५।३।६६) से 'रूपप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) ब्राह्मणिकल्पा। यहां ब्राह्मणी शब्द से 'ईषदसमाप्तौ कल्पब्देश्यदेशीयरः' (५।३।६७) से कल्पप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(५) ब्राह्मणिचेली। यहां ब्राह्मणी और चेली शब्दों का कुत्सितानि कुत्सनैः' (२।१।५३) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। चेलट् शब्द कुत्सनवाची है। इसके टित् होने से 'टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से स्त्रीलिङ्ग में डीप्' प्रत्यय होता है। ऐसे ही-ब्राह्मणिब्रुवा और ब्राह्मणिगोत्रा । ब्रुव और गोत्र शब्द कुत्सनवाची हैं।
(६) ब्राह्मणिमता। यहां ब्राह्मणी और मता शब्दों का विशेषणं विशेष्येण बहुलम् (२।१।५७) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे हीब्राह्मणिहता। हस्व-विकल्प:
(२) नद्याः शेषस्यान्यतरस्याम्।४४। प०वि०-नद्या: ६।१ शेषस्य ६।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम्।
अनु०-उत्तरपदे, घरूपकल्पचेलड्ब्रुवगोत्रमतहतेषु, ह्रस्व इति चानुवर्तते।