Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
४११
षष्टाध्यायस्य द्वितीयः पादः
४११ अन्तोदात्तविकल्प:
(५६) सक्थं चाक्रान्तात् ।१६८ । प०वि०-सक्थम् ११ च अव्ययपदम्, अक्रान्तात् ५।१।
स०-क्र-शब्दोऽन्ते यस्य स:-क्रान्त:, न क्रान्त इति अक्रान्त:, तस्मात्-अक्रान्तात् (बहुव्रीहिगर्भितनञ्तत्पुरुष:)।
अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, समासे, विभाषा, बहुव्रीहौ इति चानुवर्तते।
अन्वय:-बहुव्रीहौ समासेऽक्रान्तात् सक्थम् उत्तरपदं च विभाषाऽन्त उदात्तः।
अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे क्रान्तवर्जिताच्छब्दात् परं सक्थमित्युत्तरपदं विकल्पेनान्तोदात्तं भवति।
उदा०-गौरं सक्थि यस्य स:-गौरसक्थ: । गौरसक्थः । श्लक्ष्णसक्थः । श्लक्ष्णसक्थ: । अक्रान्तादिति किम्-चक्रसक्थः ।
आर्यभाषा अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि (समासे) समास में (अक्रान्तात्) क्रान्त से भिन्न शब्द से परे (सक्थम्) सक्थ (उत्तरपदम्) उत्तरपद को (विभाषा) विकल्प से (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।
उदा०-गौरसक्थः । गौरसक्थः । गौरवर्ण सक्थि-जंघावाला पुरुष। श्लक्ष्णसक्थः । श्लक्ष्णसक्थः । श्लक्ष्ण=चिकनी जंघावाला पुरुष ।
सिद्धि-गौरसक्थः । यहां गौर और सक्थि शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस समास में क्रान्त शब्द से भिन्न गौर शब्द से परे सक्थ उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है।
यहां सूत्र में सक्थ-शब्द का समासान्त रूप में पाठ है। बहुव्रीहौ सक्थक्ष्णो: स्वाङ्गात् पच् (५।४।११३) से 'सक्थि' शब्द से समासान्त षच्' प्रत्यय है। अत: यहां समासान्त 'सक्थ' रूप का ही ग्रहण किया जाता है।।
यहां विकल्प पक्ष में 'बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम्' (६।२।१) से गौर पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है। गौर शब्द में 'गोर' शब्द से 'प्रज्ञादिभ्यश्च' (५।४।३८) से स्वार्थ में 'अण्' प्रत्यय है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है-गौरसक्थः । इस प्रकार श्लक्ष्ण' शब्द में 'श्लिष आलिङ्गने (दि०प०) धातु से 'श्लिषेरच्चोपधाया:' (उणा० ३ १९) से क्स्न' प्रत्यय है। अत: यह भी प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है-लक्ष्णसक्थः ।