Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्टाध्यायस्य तृतीयः पादः
४२५ सिद्धि-वर्षेजः । यहां वर्ष और ज-शब्दों का उपपदमतिङ्' (२।२।१९) से उपपद तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से इस उपपद तत्पुरुष समस में वर्ष-शब्द से परे सप्तमी विभक्ति का ज-शब्द उत्तरपद होने पर लुक नहीं होता है। विकल्प पक्ष में सुपो धातुप्रातिपदिकयो:' (२।४/७१) से सप्तमी विभक्ति का लुक् होता है-वर्षजः । ऐसे ही-क्षरेजः, क्षरज: आदि। सप्तमी-अलुग्विकल्पः
(१७) घकालतनेषु कालनाम्नः।१७। प०वि०-घ-काल-तनेषु ७१३ कालनाम्न: ५।१।
स०-घश्च कालश्च तनश्च ते-घकालतना:, तेषु-घकालतनेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। कालस्य नाम इति कालनाम, तस्मात्-कालनाम्न: (षष्ठीतत्पुरुष:)।
अनु०-अलुक्, उत्तरपदे, सप्तम्या:, तत्पुरुषे, विभाषा इति चानुवर्तते।
अन्वय:-तत्पुरुषे कालनाम्नः सप्तम्या घकालतनेषु उत्तरपदेषु विभाषाऽलुक् ।
अर्थ:-तत्पुरुष समासे कालवाचिन: शब्दात् परस्या: सप्तम्या घ-संज्ञके प्रत्यये कालशब्दे तन-प्रत्यये चोत्तरपदे विकल्पेनालुग भवति ।
उदा०-(घ:) पूर्वार्कोतरे, पूर्वाह्नतरे। पूर्वाह्नतमे, पूर्वाह्णतमे। (काल:) पूर्वाणैकाले, पूर्वाह्नकाले। (तन:) पूर्वाह्णतने। पूर्वाह्णतने ।
_ आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (कालनाम्नः) कालवाची शब्द से परे (सप्तम्या:) सप्तमी विभक्ति का (घकालतनेषु) घ-संज्ञक प्रत्यय, काल-शब्द और तन-प्रत्यय (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (विभाषा) विकल्प से (अलुक्) लुक् नहीं होता है।
उदा०-(घ) पूर्वाह्णतरे, पूर्वाह्णतरे। दो में से अधिक पूर्वाह्न में। पूर्वाण दिन का पूर्वभाग। पूर्वाह्णतमे, पूर्वाह्णतमे । बहुत में अधिक पूर्वाह्ण में। (काल) पूर्वाह्णकाले, पूर्वाह्नकाले । पूर्वाह्न समय में। (तन) पूर्वाह्नतने । पूर्वाह्णतने । पूर्वाह्य में होनेवाले कर्म में।
सिद्धि-(१) पूर्वाह्णतरे । यहां सप्तम्यन्त पूर्वाह्ण' शब्द से 'द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनौ' (५।३ ।५७) से घ-संज्ञक तरप्' प्रत्यय है। इस सूत्र से कालवाची पूर्वाह्न शब्द से परे सप्तमी विभक्ति का घ-संज्ञक तरप्' प्रत्यय परे होने पर लुक् नहीं होता है।