Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्टाध्यायस्य तृतीयः पादः यहां तत्' शब्द से पञ्चम्यास्तसिल (५।३।७) से तसिल प्रत्यय है। त्यदादीनाम:' (७।२।१०२) से तत्' के तकार को अकार आदेश होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टा (४।१।४) से टाप्' प्रत्यय है। इस सूत्र से भाषितपुंस्क, ऊप्रत्यय से रहित, स्त्रीलिङ्ग 'ता' शब्द के स्थान में तसिल्-प्रत्यय परे होने पर उसे पुंलिङ्ग शब्द के समान 'त' रूप हो जाता है।
(२) यत: । यहां यत्' शब्द से पूर्ववत् तसिल्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) तत्र । यहां तत्' शब्द से सप्तम्यास्त्रल' (५ ।३ ।१०) से 'बल' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) यत्र । यहां यत्' शब्द से पूर्ववत् 'चल' प्रत्यय है।
विशेष: तसिलादि प्रत्यय-महाभाष्यकार पतंजलि ने तसिलादि प्रत्ययों में इन प्रत्ययों का परिगणन किया है-त्र, तस्, तर, तमप्, चरट, जातीयर्, कल्पप्, देश्य, देशीयर, रूपप्, पाशप, थम्, थाल्, दा, हिल्, तिल्, तातिल्। पुंवद्भावः
(३) क्यङ्मानिनोश्च ।३६। प०वि०-क्यङ्-मानिनो: ७।२ च अव्ययपदम् ।
स०-क्यङ् च मानिन् च तौ क्यङ्मानिनौ, तयो:-क्यङ्मानिनो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-उत्तरपदे, स्त्रिया:, पुंवत्, भाषितपुंस्कादनूङ् इति चानुवर्तते। अन्वय:-क्यङ्मानिनोश्चोत्तरपदे भाषितपुंस्कादनूङ: स्त्रिया: पुंवत् ।
अर्थ:-क्यप्रत्यये मानिनि शब्दे चोत्तरपदे भाषितपुंस्कादनूङ: यस्माद् भाषितपुंस्काच्छब्दाद् ऊङ्प्रत्ययो न कृतस्तस्य स्त्रीलिङ्गस्य शब्दस्य पुंलिङ्गशब्दस्येव रूपं भवति।
उदा०- (क्यङ्) एनी इवाचरति-एतायते। श्येनी इवाचरतिश्येतायते। (मानिन्) दर्शनीयामिमां मन्यतेऽयमिति-दर्शनीयमानी अयमस्या: । दर्शनीयमानिनीयमस्या:।
आर्यभाषा: अर्थ-(क्यङ्मानिनो:) क्यङ् और मानिन् शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (च) भी (भाषितपुंस्कादनूङ्) जिस शब्द ने समान आकृति में पुंलिङ्ग अर्थ को कहा है, उस ऊप्रत्यय से रहित, (स्त्रिया:) स्त्रीलिङ्ग शब्द के स्थान में (पुंवत्) पुंलिङ्गवाची शब्द के समान रूप होता है।