Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(क्यङ्) एतायते। जो एनी के समान आचरण करता है। एनी अनेक वर्णोवाली। श्येतायते। जो श्येनी के समान आचरण करता है। श्येनी सफेद वर्णवाली। (मानिन्) दर्शनीयमानी अयमस्याः। यह पुरुष इस स्त्री का दर्शनीयमानी है अर्थात् यह इसे दर्शनीय मानती है। दर्शनीयमानिनीयमस्याः। यह स्त्री इस स्त्री की दर्शनीयमानिनी है अर्थात् यह स्त्री इस स्त्री को दर्शनीय मानती है।
सिद्धि-(१) एतायते । एनी+क्यङ्। एत+य। एताय+लट् । एताय+शप्+त। एताय+अ+ते। एतायते।
यहां एनी' शब्द से कर्तः क्यङ् सलोपाश्च' (३।१।११) से क्यङ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से भाषितस्क, ऊड्-प्रत्यय से रहित, स्त्रीलिङ्ग एनी' शब्द को क्यङ्' प्रत्यय परे होने पर पुंवद्भाव होता है अर्थात् उसका पुंलिङ्ग के समान एत' रूप हो जाता है। 'अकृत्सार्वधातुकयोर्दीर्घः' (७।४।५४) से दीर्घ होता है। एनी' शब्द में एत' शब्द से स्त्रीत्व-विवक्षा में 'वर्णादनुदात्तात् तोपधात् तो न:' (४।१।३९) से डीप् प्रत्यय और तकार को नकार आदेश है। ऐसे ही श्येनी शब्द से-श्येतायते।
(२) दर्शनीयमानी। यहां दर्शनीया और मानिन् शब्दों का उपपदमतिङ् (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से भाषितपुंस्क, ऊङ्-प्रत्यय से रहित, स्त्रीलिङ्ग दर्शनीया शब्द को मानिन्-शब्द उत्तरपद होने पर पुंवद्भाव होता है। ऐसे हीदर्शनीयमानिनी। पुंवद्भाव-प्रतिषेधः
(४) न कोपधायाः ।३७। प०वि०-न अव्ययपदम्, कोपधाया: ६।१। स०-क उपधा यस्याः सा कोपधा, तस्या:-कोपधाया: (बहुव्रीहिः)। अनु०-उत्तरपदे, स्त्रिया:, पुंवत्, भाषितपुंस्कादनूङ् इति चानुवर्तते। अन्वय:-भाषितापुंस्कादनूङ: कोपधाया: स्त्रिया उत्तरपदे पुंवन्न।
अर्थ:-भाषितपुंस्कादनूङ: यस्माद् भाषितपुंस्काच्छब्दाद् ऊप्रत्ययो न कृतस्तस्य ककारोपधस्य स्त्रीलिङ्गस्य शब्दस्य उत्तरपदे परत: पुंलिङ्गशब्दस्येव रूपं न भवति ।
उदा०-(स्त्रियां समानाधिकरणे उत्तरपदे) पाचिका भार्या यस्य स:-पाचिकाभार्यः। कारिकाभार्यः। मद्रिकाभार्यः। वृजिकाभार्यः । (तसिलादिषु) ईषद् असमाप्ता मद्रिका इति मद्रिकाकल्पा। (क्यङ्)