Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
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सिद्धि - (१) द्विकंसे: । यहां द्वि और कंस शब्दों का 'तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२1१1५० ) से तद्धित - अर्थ में द्विगुतत्पुरुष समास है । द्विकंस शब्द में 'कंसाठिन्' (५1१।२५) से क्रीत- अर्थ में टिठन् प्रत्यय और 'अध्यर्धपूर्वाद् द्विगोर्लुगसंज्ञायाम्' (५1१/२८) से उसका लुक् होता है। इस सूत्र से द्विगुसमास में कंस उत्तरपद को आद्युदात्त स्वर होता है। ऐसे ही त्रिकंसे: द्विमन्यः । त्रिमन्यः ।
(२) द्विशूर्प: । यहां द्वि और शूर्प शब्दों का पूर्ववत् द्विगुतत्पुरुष समास है। द्विशूर्प शब्द से 'शूर्पादञन्यतरस्याम्' (५1१।२६ ) से क्रीत- अर्थ में अञ् प्रत्यय और उसका पूर्ववत् लुक् होता है। इस सूत्र से द्विगुसमास में शूर्प उत्तरपद को आद्युदात्त स्वर होता है। ऐसे ही- त्रिशूर्पः ।
(३) द्विपाय्र्य: । यहां द्वि और पाय्य शब्दों का पूर्ववत् द्विगुतत्पुरुष समास है । 'द्विपाय्य' शब्द से 'तेन क्रीतम्' (५1१1३७ ) से यथाविहित 'ठञ्' प्रत्यय और उसका पूर्ववत् लुक् होता है। इस सूत्र से द्विगुसमास में 'पाय्य' उत्तरपद को आद्युदात्त स्वर होता है। ऐसे ही- त्रिपाय्यः ।
(४) द्विकाण्डे | यहां द्वि और काण्ड शब्दों का पूर्ववत् द्विगुतत्पुरुष समास है । 'द्विकाण्ड' शब्द से 'प्रमाणे द्वयसज्दघ्नमात्रच: ' ( ५ | २ | ३७ ) से 'द्वयसच्' आदि प्रत्यय और उनका वा०- 'प्रमाणे लो द्विगोर्नित्यम्' (५ / २ / ३७ ) से लुक् होता है । इस सूत्र से द्विगुसमास में काण्ड उत्तरपद को आद्युदात्त स्वर होता है। ऐसे ही - त्रिकाण्ड: ।
विशेष: (१) कंस - चरक के अनुसार कंस आठ प्रस्थ या दो आढक के बराबर था । वह अर्थशास्त्र की तालिका के अनुसार पांच सेर और चरक की तालिका के अनुसार ६६ सेर के बराबर हुआ ।
(२) मन्थ - इसकी ठीक तोल किसी तालिका में नहीं मिलती। सम्भव है 'मन्थ' द्रोण का पर्यायवाची हो। कौटिल्य के अनुसार द्रोण १० सेर की तोल थी। वही सम्भवत: मन्थ की भी तोल थी ।
(३) शूर्प - चरक ने दो द्रोण का शूर्प माना है, जिसे कुम्भ भी कहते थे। उनकी तालिका के अनुसार शूर्प = ४०९६ तोला =१ मन ११ सेर १६ तोला (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० २४५)।
(४) पाय्य - अन्न मापने का पात्रविशेष मांप आदि ।
(५) काण्ड - काण्ड एक नाप थी। जिसकी लम्बाई १६ हाथ मानी जाती थी षोडशारत्न्यायामो दण्डः काण्डम्' (बालमनोरमा)। अरत्नि=दो वितस्ति या २४ अंगुल = १८ इंच। इस प्रकार एक काण्ड खेत २४ फुट से २४ फुट हुआ ( पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० १९९) ।