Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(युक्तरोद्यादय:) युक्तरोही आदि शब्दों में (च) भी (पूर्वपदम्) पूर्वपद (आदिरुदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०-युक्तारोही। अश्वशाला में नियुक्त अधिकारी। आगेतरोही। नये आये हुये घोड़े को रोहण योग्य बनानेवाला। आगतयोधी। नये आये हुये घोड़े आदि को प्रहार से साधनेवाला, इत्यादि।
सिद्धि-युक्तारोही। यहां युक्त उपपद आङ्पूर्वक रुह बीजजन्मनि प्रादुर्भाव च (भ्वा०प०) धातु से सुप्यजातौ णिनिस्ताच्छील्ये' (३।२।७८) से णिनि प्रत्यय है। इस सूत्र से युक्त' पूर्वपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-आगतरोही, आर्गतयोधी।
विशेष: पाणिनि ने अश्वशाला के युक्त अधिकारियों को युक्तारोही' कहा है (६।२।८१)। उन्हें ही अर्थशास्त्र में युक्तारोहक कहा गया है (५ ॥३)। उन्हें प्रतिवर्ष ५०० से १००० कार्षापण तक पूजा-वेतन दिया जाता था। युक्तारोहक अधिकारियों का कर्तव्य अविनीत हाथी और घोड़ों को शिक्षा देकर उन्हें आरोहण के योग्य बनाना था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ४०२)। आधुदात्तम्
(१६) दीर्घकाशतुषभ्राष्ट्रवटं जे।८२ प०वि०-दीर्घ-काश-तुष-भ्राष्ट्र-वटम् ११ जे ७१।
स०-दीर्घश्च काशश्च तुषश्च भ्राष्ट्रं च वटश्च एतेषां समाहार:दीर्घकाशतुषभ्राष्ट्रवटम् (समाहारद्वन्द्वः) ।
अनु०-पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त इति चानुवर्तते । अन्वय:-जे दीर्घकाशतुषभ्राष्ट्रवटं पूर्वपदमादिरुदात्त: ।
अर्थ:-जे-शब्दे उत्तरपदे दीर्घान्तं पूर्वपदं काशतुषभ्राष्ट्रवटानि च पूर्वपदानि आधुदात्तानि भवन्ति ।
उदा०-(दीर्घ:) कुट्यां जात इति कुटीज: । शमीज: । (काश:) काशे जात इति काशजः । (तुष:) तुषे जात इति तुषजः । (भ्राष्ट्रम्) भ्राष्ट्रे जात इति भ्राष्ट्रजः । (वट:) वटे जात इति वटजः।
आर्यभाषा: अर्थ-(जे) ज-शब्द उत्तरपद होने पर (दीर्घकाशतुषभ्राष्टवटम्) दीर्घान्त पूर्वपद और काश, तुष, भ्राष्ट्र, वट (पूर्वपदम्) पूर्वपद (आदिरुदात्त:) आधुदात्त होते हैं।