Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्र -प्रवचनम्
सिद्धि-ग॒र्गत्र॑रात्र: । यहां गर्ग और त्रिरात्र शब्दों का षष्ठी' (२/२/८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है । 'त्रिरात्र' शब्द में 'तिसृणां रात्रीणां समाहारः- त्रिरात्रः, 'तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२1१ 1५०) से समाहार अर्थ में द्विगुसमास है और 'अह :सर्वैकदेशसंख्यातपुण्याच्च रात्रे:' ५।४।८७) से समासान्त टच्' प्रत्यय होता है। इस सूत्र सेक्रतुविशेषवाची समास में द्विसंज्ञक त्रिरात्र' शब्द उत्तरपद होने पर गर्ग पूर्वपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। ऐसे ही - च॒र॒कत्र॑रा॒त्रः कुसु॒र॒वि॒न्दस॑प्त॒रात्रः ।
अन्तोदात्तम्
३१८
(७) सभायां नपुंसके । ६८ ।
प०वि० सभायाम् ७ । १ नपुंसके ७ । १ । अनु० - पूर्वपदम्, उदात्त:, अन्त चानुवर्तते । अन्वयः - नपुंसके सभायां पूर्वपदम् अन्त उदात्तः । अर्थ:-नपुंसकलिङ्गे समासे सभा-शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदम् अन्तोदात्तं
भवति ।
उदा०-गोपालस्य सभेति गोपालस॑भम् । प॒शु॒पा॒लस॑भम् । स्त्रसभम् । द॒सीस॑भ॒म् ।
आर्यभाषाः अर्थ- (नपुंसके) नपुंसकलिङ्ग समास में (सभायाम् ) सभा शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम् ) पूर्वपद (अन्त उदात्त: ) अन्तोदात्त होता है।
उदा०- - गो॒पा॒लस॑भम् । गोपाल का घर । प॒शु॒पा॒लस॑भम् । पशुपाल का घर । स्त्रीसेभम् । स्त्री का घर । दासीसेभम् । दासी का घर ।
सिद्धि-गोपालस॑भम् । यहां गोपाल और सभा शब्दों का 'षष्ठी' (२ 1२1८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है । 'सभा राजाऽमनुष्यपूर्वी (२।४।२३) से सभान्त तत्पुरुष नपुंसक लिङ्ग होता है। इस सूत्र से नपुंसकलिङ्ग समास में सभा-शब्द उत्तरपद होने पर पूर्वपद को अन्तोदात्त स्वर होता है।
विशेषः सभा शब्द के समुदाय और शाला दो अर्थ हैं। यहां शाला (घर) अर्थ का ग्रहण किया गया है। 'वास: कुटी शाला सभा' इत्यमरः ।
अन्तोदात्तम्
(८) पुरे प्राचाम् । ६६ ।
प०वि० - पुरे ७।१ प्राचाम् ६।३। अनु० - पूर्वपदम्, उदात्त:, अन्त इति चानुवर्तते ।